पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/२५०

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( २३० ) का सोवो सुमिरन की वेरिया । जिन सिरजा तिन की सुधि नाहीं, भकत फिरो झकझलनि झलरिया। गुरु · उपदेस सँदेस कहत हैं, भजन करो चढ़ि गगन अटरिया । नित उटि पाँच पचिसकै झगरा, व्याकुल मोरी सुरति सुंदरिया । कहत कबीर सुनो भाई साधो, भजन विना तोरी सूनी नगरिया ॥१५९॥ वागों ना जा रे तेरे काया में गुलजार । करनी क्यारी बोर के रहनी कर रखवार । दुरमति काग उड़ाइ के देखें अजय बहार | मन माली परवोधिए करि संजम की वार । दया पौद सूखे नहीं छमा सींच जल ढार । गुल और चमन के यांच में फूला अजव गुलाव । मुक्ति कली मतमाल की पहिरूँ [थि गलहार । अष्ट कमल से ऊपजे लीला अगम अपार । कह कबीर चित चेत के पावागवन निवार ॥१६०।। सुमिरन विन गोता खाओगे। मुट्ठी बाँधि गर्भ से आए हाथ पसारे जानोगे। जैसे मोती फरत श्रोस के बेर भए झर जायोगे ।। जैसे हाट लगाये हटवा लौदा दिन पछतायोगे। कहे कबीर सुनो भाई साधो लौदा लेकर जायोगे ।।१६।। अरमन समम के लादु लदनियाँ। काहे फ टटुवा काहे क पाखर काहे क भरी गौनियाँ । मन के टुया मुरनि के पावर भर पुन पाप गौनियाँ । घर के लोग जगाती लागे छीन लय करधनियाँ। सादा कर तो यदि फर भाई धागे हाट न धनियाँ ॥