सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/२५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( २३१ ) पानी पी तो यहीं पी भाई आगे देस निपनियाँ। कहैं कवीर सुनो भाई साधेा सत्त नाम कावनियाँ ॥१२॥ दिवाने मन भजन विना दुख पैहो। पहिले जनम भूत का पैहो सात जनम पछितैहो । काँटा पर कै पानी पैहो प्यासन ही मरि जैहो। दूजा जनम सुवा का पैहो वाग बसेरा लइहो । टूटे पंख वाज मँडराने अधफड़ प्रान गवाहो ॥ वाजीगर के वानर होइहौ लकड़िन नाच नचैहौ। ऊँच नीच से हाथ पसरिहो माँगे भीख न पैहो॥ तेली के घर चैला होइहो आँखिन ढाँप ढंपैहो । कोस पचास घर में चलिहौ बाहर होन न पैहो । पँचवाँ जनम ऊँट के पैहो विन तौले वोझ लदैहो। बैठे से तो उठे न पैहो घुरच घुरच मरि जैहो । धोबी घर के गदहा होइही कटी घास ना पैहो । लादी लादि आपु चढ़ि बैठे लै घाटे पहुँचैहो । पच्छी माँ तो कौवा होइहो करर करर गुहरैहो । उड़ि के जाइ वैठि मैले थल गहिरे चोच लगैहो । सत्त नाम की टेर न करिहौ मन ही मन पछितैहो। कहैं कवीर सुनो भाई साधो नरक निसाही पैहो ॥१६॥ साधो यह तन ठाठ तवूरे का। ऐचत तार मरोरत खूटी निकसत राग' हजूरे का। टूटे तार विखर गई लँटी हो गया धूरम धूरे का ॥ या देही का गरव न कीजै उड़ि गया हंस तवूरे का। कहत कवीर सुनो भाई साधो अगम पंथ कोइ सूरे का॥१६॥ गगन घटा घहरानी, साधो गगन घटा घहरानी। पूरव दिसि से उठी वदरिया रिमझिम बरसत पानी। .. . श्रापन आपन मेंड़ सम्हारो वहयो जात यह पानी ॥