पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/२६०

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(२३८ ) हद तुम ही पप. mi मागुन बनाई। फहहि फीर मुनादी मंत्री गगन गोदा। ग्राम गा औरन मामा रिमा किन लिमि। जा मुग्न वेद गयी उन जानु मनन गान जा रॉय जगत उटि लागे ना मान तिर। अपने ऊँच नीना भोजन मिल गरम करिअरम॥ प्रहगा सामायन मिकिनमे पर पता । पकादनी नली नदि जाने भन न दिया । नजि फपर गाँठी चिग याँ मान गमाप मामि। छाजें साधु चोर प्रतिपाल संत जनन की । फह फीर जिता फलंपट पतिविधि प्रानी नरफ पर 11|| रामन रमसि फोन लागा। मगिजी का फसमागा॥ फोर तीरथ कोर मुंदित फेना । पागं भग्म मंत्र उपदेगा। विद्या चंद पनि कर फागनकाल मुगाफाँवारा ।। दुखित मुखित सब कुट्य जवइये। मरन पर अयानर दस पदवे ॥ , कह फीर यह कलि है खोटी। जो रह कर वा निकरल टोटी ८५ हरि दिनु भरम विगुर विनु गंदा। जहँ जहँ गए अपनपी सोए तेहि फंदे व फंदा । योगी फह योग है नीको दुतिया और न भाई। चुंडित मुंडित मौन जटाधरितिनहुँ कहाँ सिध पाई। सानी गुनी सूर फयि दाता ये जो कहहिं बड़ हमहीं। जह से उपजे तहँहिं समाने लुटि गए मय तवहीं । वाएँ दहिने तजो विकार निजु कै हरि पद गहिए । कह कवीर गूंगे गुड़ खाया पूछै सों का फहिए ॥१८॥ जसमाँस नर का तस माँस पशु फा रुधिररुधिरएक सारा जी। पशु का माँस भखै सब कोई नरहिं न भखै सियारा जी ।।