पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/२६८

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अब का नल शकले मीना । उटिरिन.फगा, मग मी निता ।। खीर माँटगत पिट संचाग । मो तनी चाहर करिडारा॥ मिर रनि रनि चाँयापागा। मोमिर रतन विदानी मागा।। हाज जन लकती मगर मन बन ग: गृगी। श्रावत संग न जात की नाथी का भयो दल माजा ।। माया को रम ले न पाया। अंगर जर पिलारी धाया ।। का पीर नर बाजा, न सागा। यम को मांगरा पर सिर लागा ॥२०॥ राम नाम भनु गम नाम भनु नि देणु मन माती हो। वच्छ करोर जोरि धन गाडे चले बोलावन गाती हो। दाऊ दादा श्री परगाजा उह गाई भु भाँड़े हो। अंधरे, भग. हियो की फूटी तिन का सज दाहो। ई संसार अनार को धंधा अंत काल कोइ नाहीं। उपजत विनसत बार न लागे ज्यों बादरको छाँहीही॥ नाता गोता कुल कुटुंब सब तिन की कनि यड़ाई हो। कह कबीर एक राम भजे बिन यूड़ी सब चतुराई हो ॥२०७।। ऐसन देह निरापन बोरे मुग एवं नहिं कोई हो। डंडक डोरवा तोर ले श्राइन जो फटिक धन होई हो ॥ ऊरध स्वासा उपजत पासा हॅकराइन परिवारा हो। जो कोई आवै वेग चलावे पल एक रहन न हारा हो । चंदन चूर चतुर सब ले गल गजमुकता हारा हो । चोचन गीध मुए तन लूटे जंबुक ओदर फारा हो । कहत कबीर सुनो हो संतो शान-हीन मति हीना हो । एक एक दिन यह गति सवही की कहाराव का दीना हो।२०८१ फूला फूला फिरे जगत में रे मन कैसा नाता रे। माता कहै यह पुत्र हमारा बहिन कहै विर मेरा ॥