( ३२ ) . इन ग्रंथों में बहुत से कूट शब्द भी हैं। कवीर साहव का उलटा प्रसिद्ध है। चूहा बिल्ली को खा गया, लहर में समुद्र व गया, प्रायः ऐसी उलटी बातें आपको इन्हीं शब्दों में मिलेंगी। इन शब्दों का लोगों ने मनमाना अर्थ किया है। ऐसे शब्दों का दूसरा अर्थ हो हां क्या सकता है। प्रायः लोगों को आश्चर्य में डालने के लिये ही ऐसे शब्दों की रचना होती है। मैं समझता हूँ कि कवीर लाहब का भी यही उद्देश्य था। उन्होंने ऐसे शब्द बनाकर लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया है। क्योंकि धर्म का गूढ़ रहस्य जानने के लिये संसार उत्सुक है। ऐसे दो शब्द नीचे लिखे जाते हैं। देखो लोगो हरि की सगाई, माय धरै पुत धिय संग जाई । सासु ननद मिल अदल चलाई, मादरिया गृह बेटी जाई ॥ हम बहनोई राम मोर सारा, हमहिं वाप हरि पुत्र हमारा । कहै कबीर हरी के बूता, राम रमें ते कुकुरी के पूता ॥ कवीर वीजक, पृष्ट ३९३ देखि देखि जिय अचरज होई, यह पद बूझै बिरला कोई । धरती उलटि अकासहिं जाई, चींटा के सुख हस्ति समाई ॥ विन पवनै जहँ पर्वत उड़े, जीव जंतु सव बिरछा बु.। सूखे सरवर उठे हिलोल, विन जल चकवा करै कलोल ॥ बैठा पंडित पढ़े पुरान, पिन देखे का करै बखान । कह कबीर जो पद को जान, सोई संत सदा परसान ॥ कवीर वाजक, पृष्ठ ३९४ विद्वान् मिश्रबंधुनों ने 'मिश्रबंधुचिनोद' के प्रथम भाग में कवीर साहब के ग्रंथों और उनकी रचना के विषय में जो कुछ लिखा है, वह नीचे अविकल उद्धृत किया जाता है- ___"इस समय तक भाषा और भी परिपक्क हो गई थी। महात्मा कबीरदास ने उसका बहुत बड़ा उपकार किया।
पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/३८
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