पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( ३३ ) इन्होंने कोई पचास ग्रंथ वनाए, जिनमें से ४६ का पता लग चुका है।" -पृष्ट ११३ ___कविता की दृष्टि से इनकी उल्टवांसी बहुत प्रशंसनीय. है। इनकी रचना सेनापति श्रेणी की है। इन्होंने खरी बातें वहुत उत्तम और साफ साफ कही हैं और इनकी कविता में हर जगह सचाई की झलक देख पड़ती है। इनके ऐसे वेधड़क कहनेवाले कवि बहुत कम देखने में आते हैं। कवीर जी का अनुभव खूब वढ़ा चढ़ा था और इनकी दृष्टि अत्यंत पैनी थी। कहीं कहीं उनकी भाषा में कुछ गँवालपन आ जाता है: पर उसमें उइंडता की मात्रा अधिक होती है। ____इनके कथन देखने में तो साधारण समझ पड़ते हैं, परंतु उनमें गूढ़ आशय छिपे रहते हैं। इन्होंने रूपकों, दृष्टांतों, उत्टोक्षाओं आदि से धर्म-संबंधी ऊँचे विचारों एवं सिद्धांतों को सफलतापूर्वक व्यक्त किया है।" -पृष्ट २५२, २५३ कबीर पंथ इस पंथवाले युक्त प्रांत और मध्य भारत में अपनी संख्या के विचार से अधिक हैं। पंजाब, विहार और दक्षिण प्रांत में भी कहीं कहीं ये लोग पार जाते हैं। यद्यपि इनकी संख्या अन्य भारतवर्षीय संप्रदायों की अपेक्षा वहुत थोड़ी है, तथापि इनमें निम्नलिखित द्वादश शाखाएँ हैं- १-श्रुत गोपालदास-इनके परंपरागत शिष्य काशी के कवीर चौरा, मगहर की समाधि और जगन्नाथ एवं द्वारका के मठों पर अधिकार रखते हैं । यह शाखा अपर शाखाओं की अपेक्षा प्रतिष्ठित मानी जाती है। दूसरी शाखावाले इसको प्रधान मानते हैं।