पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/४५

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( ३९ ) संगृहीत होने से इस प्रकार का अवसर हाथ आना असंभव नहीं । यहाँ तक संदेह होता है कि जव कवीर साहब के समय में ग्रंथ संगृहीत हुए ही नहीं थे, तो भानुदास किस ग्रंथ को ले 'भागे। परंतु सोचने की बात है कि यदि कुछ शब्द पहले संगृहीत न होते, तो ग्रंथ प्रस्तुत कैसे होते । ज्ञात यह होता है कि कागज के नाना टुकड़ों पर अथवा अखल अवस्था में जो लेख इत्यादि थे, उन्हीं को लेकर भागूदास भागे। ____एक कवीरपंथी संत की गुरुभक्ति आपने सुनी। अब एक पूरनदास नामक साधु की लीला देखिए । आपने कवीर वीजक पर टीका लिखी है। इस टीका में आपने कवीर साहव के इस वाक्य को कि "मन मुरीद संसार है गुरु मुरीद कोई साध" सिद्ध कर दिया है । श्रीमान् वेस्कट कहते हैं- यह वात कि कवीर जोलाहा और एकेश्वरवादी थे, अबुलफजल ने भी मानी है, कि जिसके प्रतिकूल किसी ने कुछ नहीं कहा"।' परंतु कदाचित् उन्हें यह ज्ञात नहीं हुआ कि पूरनदास ने उनके प्रतिकूल कहा है। आपने वीजक की टीका लिखकर और उसके शब्दों का मनमाना अर्थ करके यह प्रतिपादित कर दिया है कि कबीर साहब एकेश्वर-वादी नहीं, किंतु कुछ और थे। कुछ प्रमाण लीजिए- "साखी-अमृत केरी मोटरी सिर से धरी उतार । - जाहि कहीं मैं एक है सो मोहि कह दुइ चार ॥१२२॥ टीका गुरुमुख इस संसार ने विचार की मोटरी सिर से उतार धरी, कोई विचार करता नहीं, जाको मैं कहता हूँ कि एक जीव सत्य है, और सब मिथ्या भ्रम है, सो मेरे को १-देखो कबीर ऐंड दी कबीर पंथ, पृष्ठ ६८