पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/४६

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( ४० ) दुइ चार कहता है-एक ईश्वर, एक जीव, दो ब्रह्मा, विष्णु महेश, और देवी देवता ये बताते हैं ।" -सटीक वीजक पूरनदास, पृष्ठ ५८४ "साखी-पाँच तत्व का पूतरा युक्ति रची में कीव । मैं ताहि पूछों पंडिता शब्द बड़ा की जीव ॥८२॥ टीका मायामुख-पाँच तत्त्व का पूतरा युक्ति से रचि के मैंने पैदा किया, जीव पुतले मैंने पैदा किए, इस प्रकार वेद में माया ने कहा, सोई सव पंडित लोग भी कहते हैं। गुरुमुख–ताते गुरु पूछते हैं कि पंडित तुमने चेद का शब्द माना, और कहने लगे कि ब्रह्म वड़ा कि ईश्वर वड़ा जाने सब संसार पैदा किया, परंतु अपने हृदय में विचार के देखा कि शब्द वड़ा कि जीव । अरे जो जीव न होता तो वेद आदिक नाना शब्द कौन पैदा करता और ब्रह्म, ईश्वरादि आध्यारोप कौन करता। ताते जीव ही सव ते वड़ा जाने, सव ही को थापा । शब्द, ब्रह्म यादि उपाधि सब मिथ्या जीव की करतूत, जीव सव का करनेवाला आदि ।" ___-सटीक वीजक पूरनदास, पृष्ठ ४२४ जिस राम शब्द के विषय में श्रीमान् वेस्कट कबीर साहब की यह अनुमति प्रकट करते हैं- __"कवीर साहव का विचार है कि दो अक्षर का शब्द राम इस संसार में उस एक अनिर्वचनीय सत्य का सब से अधिक निकटवर्ती है। -कवीर ऐंड दी कवीर पंथ, पृष्ट ७५ उसके विषय में पूरनदास की कल्पना मुनिए- काला सर्प सरीर में खाइनि सब जग झारि । विरले ते जन चाँचिद रामहिं भजे विचारि ॥१०॥