पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/५०

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(४४ ) सुर नर मुनि जन कौतुक आये कोटि तैतीसो जाना । । कह कवीर मोहिं व्याहि चले हैं पुरुष एक भगवाना ॥ श्रादि ग्रंथ, पृष्ट २६१ दुलहिन गावो मंगलचार । हमरे घर आये राम भतार ॥ तन रति कर मैं मन रति करिह। पाँची तत्त्व वराती। रासदेव मोहि व्याहन ऐहै मैं जोवन मदमाती ॥ सरिर सरोवर वेदी करिही ब्रह्मा वेद उचारा। रामदेव सँग भाँवरि लैही धनि धनि भाग हमारा॥ सुर तैतीसो कौतुक आये मुनिवर सहस अठासी। कह कवीर हम व्याहि चले हैं पुरुख एक अविनासी । कवीर वीजक, पृष्ट ४३१ 'दूलहिन गावो मंगलचार । हम घर आये परमपुरुप भरतार । तन रति करि मैं मन रति करिहों पाँची तत्त्व वराती । गुरुदेव मेरे पाहुन आये मैं जोवन में माती ॥ सरीर सरोवर वेदी करिहीं ब्रह्मा वेद उचार। गुरुदेव सँग भाँवरि लैहों धन धन भाग हमार ॥ मुर तेंतीसो कौतुक श्राये मुनिवर सहस अठासी । कह कबीर हम व्याहि चले है पुरुप पक अविनासी ॥ कवीर शब्दावली, प्रथम भाग, पृष्ठ ९, १० इस प्रकार विरुद्धाचरण, शब्द, वाक्य और अयों में लोट- फेर, अवतार संबंधी नामों के बहिष्कार इत्यादि का प्रभूत प्रमाण होते हुए भी श्रीमान् सफट कहते हैं- फिर भी इस बात का विश्वास करने के लिये दलीलें हैं कि कबीर की शिक्षाएँ धीरे धीरे अधिकतर हिंदू श्राझार में दल गई है"कबीर पंड दी कीर पंथ, पृष्ट ४३ उनका यह कथन कहाँ नक युक्तिसंगन है, इसका विज्ञान लोग स्वयं विचार।