अव इन सिद्धांतों के साथ कबीर साहव के एकेश्वरवाद, साम्यवाद, भक्तिवाद, जन्मांतरवाद और अहिंसावाद को मिलाइए, देखिए कहीं कुछ अंतर है। पहले जो मैं कवीर साहव के एकेश्वरवाद की व्याख्या कर आया है, वह दूसरों को कुछ उलझन पैदा कर सकती है। परंतु वैष्णव उस एकेश्वरवाद से भली भाँति परिचित हैं । समस्त रामोपासक वैष्णव रामचंद्र को साकेतलोक का निवासी बतलाते हैं। साकेतलोक और उसके निवासी का वैष्णव वैसा ही वर्णन करते हैं, जैसा कवीर साहव ने सत्यलोक और उसके निवासी का किया है। प्रमाण लीजिए और अद्भुत सास्य अवलोकन कीजिए- अयोध्या च परब्रह्म सरयू सगुणः पुमान् । तन्निवासी जगन्नाथः सत्यं सत्यं वदास्यहम् ॥ १॥ अयोध्यानगरी नित्या सच्चिदानंदरूपिणी । यदशांशेन गोलोकः वैकुंठस्थः प्रतिष्ठितः ॥ २॥ -वसिष्ठसंहिता (कवीर चीजक, पृ० ४) कवीर पंथ और संत मतवाले अपने 'साहव' को चैतन्य देश का धनी कहते हैं। वशिष्ठसंहिता में भी साकेतलोक का लक्षण यही लिखा है- यत्र वृक्ष-लता-गुल्म-पत्र-पुष्प-फलादिकं । यत्किचित् पक्षि,गादि तत्सर्वं भाति चिन्मयम् ॥ -कवीर वीजक, पृष्ठ, २८ साकार, निराकार, परब्रह्म के परे रामचंद्र जी को वैष्णव भी मानते हैं। श्रानंदसंहिता के निम्नलिखित श्लोकों को देखिए- स्थूलं चाष्टभुजं प्रोक्तं सूक्ष्मं चैव चतुर्भुजम् । परातु द्विभुजं रूपं तस्मादेतत् त्रयं त्यजेत् ॥ ..
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