पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/६२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( ५६ ) धर्म-याजकों की ओर से उन लोगों के हृदय में अश्रद्धा, अविश्वास और घृणा उत्पन्न करें, जिनके शासन में उस काल में वे लोग थे क्योंकि विना ऐसा हुए उनके उद्देश्य के सफल होने की संभावना नहीं थी। निदान प्रथम बात पर दृष्टि रखकर अवतारवाद के विरोधी होने पर भी कबीर साहब ने अपने को अवतार और सत्यलोक निवासी प्रभु का दूत बतलाया और कहा कि जिस पद पर मैं पहुँचा, आज तक कोई वहाँ नहीं पहुंचा। उन्होंने यह दावा भी किया कि केवल हमारी वात मानने से मनुष्य छूट सकता और मुक्ति पा सकता है, अन्यथा नहीं । निम्नलिखित पद्य इसके प्रमाण है- काशी में हम प्रकट भये हैं रामानन्द चेताये । समरथ का परवाना लाये हंस उबारन पाये ॥ ~कवार शब्दावली, प्रथम भाग, पृ०७१ सोरह संख्य के आगे समरथ जिन जग मोहिं पठाया। -कवीर वीजक, पृ० २० तेहि पीछे हम अाइया सत्य शब्द के हेत । -कवीर वीजक, पृ०७ कहते मोहिं भयल जुग चरी। समझत नाहि मोहिं सुत नारी॥ कबीर वीजक, पृ० १२५ कह कवीर हम जुग जुग कहा । जव ही चेतो तव ही सही ॥ -कवीर वीजकं, पृ० ५९२ जो कोइ होइ सत्य का किनका सो हम को पतिप्राई । और न मिले कोटि करि थाकै बहुरि काल घर जाई ॥ -कवीर वीजक, पृ० २०