पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/६३

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घर घर हम सब-सों कही शब्द न सुने हमार। ते भव सागर इवहीं लख चौरासी धार ॥ -कीर वीजक, पृ० १९ कहत कबीर पुकार के सब का उहै हवाल । कहा हमर मान नहीं किमि छूटै भ्रमजाल ॥ - -फवीर बीजक, पृ० १३० जंबूद्वीप के तुम साहंसा गहिलो शब्द हमार। दास कवीरा अवकी दीहल निरगुन के टकसार ॥ -कवीर शब्दावली, द्वितीय भाग, पृ० ८० जहिया किरतिम ना हता धरती हता न नीर। उतपति परलय ना हती तव की कही कवीर ॥ -कवीर वीजक, पृ० ५९८ ई जग तो जहँड़े गया भया जोग ना भोग। तिल तिल झारि कवीर लिय तिलठी झारै लोग ॥ कवीर वीजक, पृ०६३२ सुर नर मुनिजन औलिया यह सव उरली तीर। अलह राम की गम नहीं तहँ घर किया कवीर ॥ .-साखीसंग्रह, पृ० १२५ दूसरी वात पर दृष्टि रखकर उन्होंने हिंदू और मुसल्मान धर्म के ग्रंथों की निंदा की, उन्हें धोखा देनेवाला बतलाया और कहा कि माया अथवा निरंजन ने उसकी रचना केवल संसार के लोगों को भ्रम में डालने के लिये कराई। इन बातों के प्रमाण नीचे के वाक्य हैं। इनमें आप उनके धर्मनेताओं की भी निंदा देखेंगे। जोग जज्ञ जप संयमा तीरथ व्रत दाना। नवधा वेद किताव है झूठे का वाना -कवीर वीजक, पृ० ४११