( ५८ ) हिंदू मुसल्मान दो दीन सरहद वने वेद कत्तेव परपंच साजी ।। -ज्ञानगुदड़ी, पृ० १६ वेद किताव दोय फंद सँवारा । ते फंदे पर आप विचारा । -कवीर वीजक, पृ० २६९ चार वेद पट शास्त्रऊ औ दस अष्ट पुरान । आशा दै जग वाँधिया तीनों लोक भुलान ॥ -कवीर वीजक, पृ० १४. औ भूले षट् दरसन भाई । पाखंड भेख रहा लपटाई । ताकर हाल होय अधकूचा । छ दरशन में जौन विगूचा ॥. -कवीर वीजक, पृ० ९७. ब्रह्मा विष्णु महेसर कहिये इन सिर लागी काई।। इनहि भरोसे मत कोइ रहियो इनहूँ मुक्ति न पाई ॥ -कबीर शब्दावली, द्वितीय भाग, पृ० १९. सुर नर मुनी निरंजन देवा सव मिली कीन्हा एक बँधाना। आप बँधे औरन को बाँधे भवसागर को कीन्ह पयाना ॥ -कवीर शब्दावली, तृतीय भाग, पृ० ३८. माया.ते मन ऊपजै मन ते दस अवतार । ब्रह्मा विष्णु धोखे गये भरम परा संसार ॥ -कबीर वीजक, पृ० ६५०. चार वेद ब्रह्मा निज ठाना । मुक्ति का मर्म उनहुँ नहिं जाना। हवीवी और नवी कै कामा। जितने अमल सो सबै हरामा ॥ ___-कबीर वीजक, पृ० १०४, १२४ परधर्म और उसके पवित्र ग्रंथों का खंडन करके निज- धर्म-स्थापन और सर्व साधारण में अपने को अवतार या. पैगंवर प्रगट करने की प्रथा प्राचीन है। कवीर साहव का यह. नया आविष्कार नहीं है। किंतु देखा जाता है कि इस विषय में
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