पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/६६

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दुनिया के लिये निश्चित करते हैं, हिंदू धर्म और कवीर साहब दोनों का जनक वे ईश्वर को मानते हैं। फिर कवीर साहब हिंदू मजहब के ही तो सिद्ध हुए। अर्थात् कबीर साहव का वही सिद्धांत पाया गया, जो हिंदू धर्म का है। वैदिक धर्म को ही वे हिंदू मजहब कहते हैं। परंतु कबीर साहब के जो विचार वेदों के विषय में हैं, उनको मैं ऊपर प्रकट कर पाया। मैं यह मानूंगा कि कवीर साहव जब चिंताशीलता से काम लेते हैं और ऊँचे उठते हैं, तव सत्य वात कह जाते हैं। एक स्थान पर उन्होंने स्पष्ट कहा है-'वेद कतेव कहो मति भूठे झूठा जो न विचारै। किंतु उनका यह एकदेशी विचार है। व्यापक विचार उनका वेद और कुरान की प्रतिकूलता-मूलक है। यद्यपि उन्होंने एक महान् उद्देश्य की सिद्धि के लिये यह स्वतंत्र पथ ( अर्थात् ऐसा पथ जो हिंदू मुसल्मानों से अलग अलग है ) ग्रहण किया, किंतु मेरा विचार है कि वह उनके महान् उद्देश के अनुकूल न था, जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि हिंदू मुसल्मानों की विभेद सीमा आज भी वैसा ही अचल अटल है। हिंदू मुसल्मानों के लिये मगहर में अलग अलग बनी हुई उनकी दो समाधियाँ भी इस वात. का उदाहरण हैं। विचार मर्यादा-पूर्ण, सहानुभूति-मूलक और परिमित होने से ही समावृत होता है। वह विचार कभी कार्यकारी और सुफल-प्रसू नहीं होता, जिसमें यथोचित शालीनता नहीं होती। मनुष्य और कटूक्तियों को किसी प्रकार सहन कर लेता है। परंतु जव उसके ग्रंथों और धर्मनेताओं पर आक्रमण होता है, तव उसकी सहनशीलता की प्रायः समाप्ति हो जाती है। १-देखो आदि ग्रंथ, पृष्ठ ७२७ ।