पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/६७

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उस समय वह बहुत सी सुसंगत और उचित वातों को भी स्वीकार नहीं करता । मिठाई से औषधि की कटुता ही नहीं दव जाती, कितनी अप्रिय बातें भी स्वीकृत हो जाती हैं। ऐसे अवसरों पर प्रायः लोग यह कह उठते हैं कि लोहे का मोरचा उँगलियों से मलकर नहीं दूर किया जा सकता। उसके लिये लोहे की रगड़ ही उपयोगिनी होती है। इसी प्रकार समाज की अनेक बुराइयाँ और धर्म के नाम पर किए गए कदाचार केवल प्यारी प्यारी वातों और मधुर उपदेशों से ही दूर नहीं होते । उनके लिये कट्टक्तियों की कपा ही उपकारिणी होती है । यदि यह वात स्वीकार भी कर ली जाय, तो इसका यह अर्थ कदापि नहीं हो सकता कि बुराइयों और कदाचार के साथ भलाइयों और सदाचार की पीठ भी कपा-प्रहार से क्षत-विक्षत कर दी जाय । संस्कार का अर्थ संहार नहीं है। जो क्षेत्र-संस्कारक खेत की घासों के साथ अन्न के पौधों को भी उखाड़ देना चाहेगा, वह संस्कारक नाम का अधिकारी नहीं। वेद-शास्त्र या कुरान में कुछ ऐसी बातें हो सकती हैं जो किसी समय के अनुकूल न हो। हिंदू धर्म के नेताओं या मुसल्मान धर्म के प्रचारकों के कई विचार ऐसे हो सकते हैं, जो सय काल में गृहीत न हो सके। किंतु इससे यह नहीं कहा जा सकता कि वेद-शास्त्र या कुरान में सत्य और उपकारक वातें नहीं और हिंदू एवं मुसल्मान धर्म के नेताओं ने जो कुछ . कहा, वह सब झूठ और अनर्गल कहा लोगों को धोखे में डाला और उन्हें उन्मार्गगामी बनाया। वेद-शास्त्र या कुरान को धर्मपुस्तक न समझा जाय, हिंदू मुसल्मान धर्माचार्यो को अपना पथप्रदर्शक न बनाया जाय, इसमें कोई आपत्ति नहीं, किंतु उनके विषय में ऐसी बातें कहना, जो अधिकांश में असंगत हों कदापि उचित नहीं। · : : : . . . .'