पृष्ठ:कर्बला.djvu/१००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१००
कर्बला

मुस०---उनके बारे में तुमने उन बातों की जाँच कर ली? तुम्हें यकीन है कि हुसैन उन बुराइयों से पाक हैं?

कई आ०---हमने जाँच कर ली। हुसैन मे कोई बुराई नहीं। हम हुसेन को अपना ख़लीफ़ा तसलीम करते हैं। ज़ियाद ने हमें गुमराह कर दिया था।

एक आ०---पहले ज़ियाद को क़त्ल कर दो।

दू० आ०---बेशक, उसी ने हमें गुमराह किया था।

मु०---नहीं तुम्हें रसूल का वास्ता है। मोमिन पर मोमिन का ख़ून हराम है।

[ सब आदमी वहीं बैठ जाते हैं, और मुस्लिम के हाथों पर हुसैन की बैयत करते हैं। ]


नवाँ दृश्य

[ दोपहर का समय। हानी का मकान। शरीक एक चारपाई पर पड़े हुए हैं। सामने ताक़ पर शीशियाँ और दवा के प्याले रखे हुए हैं। मुस्लिम और हानी फर्श पर बैठे हुए हैं। ]

शरीक---ज़ियाद अब अाता ही होगा। मुस्लिम, तलवार को तेज़ रखना।

हानी---मैं खुद उसे क़त्ल करता, पर जईफ़ी ने हाथों में क़ूवत बाकी नहीं रखी।

शरीक---इसमें पसोपेश की मुतलक़ ज़रूरत नहीं। हक़ की हिमायत के लिए, इस्लाम की हिमायत के लिए, क़ौम की हिमायत के लिए अगर ख़ून का दरिया बहा दिया जाय, तो उसमे फरिश्ते वजू करेंगे, औलिया की रूहें उसमें नहायेंगी। जो हाथ हक़ की हिमायत में न उठे, वह अन्धी आँखों से, बुझे हुए चिराग़ से, दिन के चाँद से भी ज़्यादा बेकार है। इस्लाम की ख़िदमत का इससे बेहतर मौक़ा आपको फिर न मिलेगा। शायद फिर कभी किसी को न मिलेगा। कूफ़ा और बसल पर कब्जा करके आप यज़ीद की बड़ी-से-