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कर्बला

तौआ---या हज़रत, तुम पर मेरी जान फ़िदा हो। जब तक तौआ ज़िन्दा है, आपको किसी दूसरे घर जाने की ज़रूरत नहीं है। ख़ुशनसीब कि मरने के वक्त आपकी ज़ियारत हुई। मैं ज़ियाद से क्यों डरूँ? जिसके लिए मौत के सिवा और कोई आरज़ू नहीं। अाइए, आपको अपने मकान के दूसरे हिस्से में ठहरा दूँ, जहाँ किसी का गुज़र नहीं हो सकता। [ मुस्लिम तौआ के साथ जाते हैं। ] यहाँ आप आराम कीजिए, मैं खाना लाती हूँ।

[ बलाल का प्रवेश। ]

बलाल---अम्मा, अाज ज़ियाद ने लोगों की ख़ताएँ माफ़ कर दी, सबको तसल्ली दी, और इतमीनान दिलाया कि तुम्हारे साथ कोई सख़्ती न की जायगी। हज़रत मुस्लिम का न-जाने क्या हाल हुअा।

तौआ---जो हुसैन का दुश्मन है, उसके क़ौल का क्या एतबार।

बलाल---नहीं अम्मा, छोटे-बड़े खातिर से पेश आये। उसकी बातें ऐसी होती हैं कि एक-एक लफ्ज़ दिल में चुभ जाता है। हज़रत मुस्लिम का बचना अब मुझे भी मुश्किल जान पड़ता है। अब ख़याल होता है, उनके यहाँ आने से हम लोगों में निफ़ाक़ पैदा हो गया। ज़ियाद ने वादा किया है कि जो उन्हें गिरफ्तार करा देगा, उसे बहुत कुछ इनाम-एकराम मिलेगा।

तौआ---बेटा, कहीं तेरी नीयत तो नहीं बदल गयी। ख़ुदा की क़सम, तुझे कभी दूध न बख़्शूँगी।

बलाल---अम्मा, ख़ुदा न करे, मेरी नीयत में फ़र्क आये। मैं तो सिर्फ बात कह रहा था। आज सारा शहर ज़ियाद को दुआएँ दे रहा है।

[ तौआ प्याले में खाना लेकर मुस्लिम को दे आती है। ]

बलाल---हज़रत हुसैन तशरीफ़ न लायें, तो अच्छा हो। मुझे खौफ़ है कि लोग उनके साथ दग़ा करेंगे।

तौआ---ऐसी बातें मुँह से न निकाल। मुँह-हाथ धो ले। क्या तुझे भूख नहीं लगी, या ज़ियाद ने दावत कर दी?

बलाल---ख़ुदा मुझे उसकी दावत से बचाये। खाना ला।

[ तौबा उसके सामने खाना रख देती है, और फिर प्याले में कुछ लेकर मुस्लिम को दे आती है। ]