सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कर्बला.djvu/११०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
११०
कर्बला

मारे नहीं रहा जाता। दुश्मन की तलवार से मरना इतना ख़ौफ़नाक नहीं है, जितना प्यास से तड़प-तड़पकर मरना। चिराग़ नज़र आता है। वहाँ चलकर पानी माँगूँ, शायद मिल जाय। (प्रकट) ऐ नेक बीबी, मेरा प्यास के मारे बुरा हाल है, थोंड़ा-सा पानी पिला दो।

तौआ---अाओ, बैठो, पानी लाती हूँ।

[ वह पानी लाती है, और मुस्लिम पीकर दीवार से लगकर बैठते हैं। ]

तौआ---ऐ ख़ुदा के बन्दे, क्या तूने पानी नहीं पिया?

मु०---पी चुका।

तौआ---तो अब घर जाओ? यहाँ अकेले खड़ा रहना मुनासिब नहीं है। ज़ियाद के सिपाही चक्कर लगा रहे हैं, ऐसा न हो, तुम्हें शुबहे में पकड़ लें।

मु०---चला जाऊँगा।

तौआ---हाँ बेटा, ज़माना खराब है, अपने घर चले जाओ।

मु०---चला जाऊँगा।

तौआ---रात गुज़रती जाती है। तुम चले जाओ, तो मैं दरवाज़ा बन्द कर लूँ।

मु०---चला जाऊँगा।

तौआ---सुभानअल्लाह! तुम भी अजीब आदमी हो। मैं तुमसे बार-बार घर जाने को कहती हूँ, और तुम उठते ही नहीं। मुझे तुम्हारा यहाँ पड़ा रहना पसन्द नहीं। कहीं कोई वारदात हो जाय, तो मैं ख़ुदा के दरगाह में गुनहगार बनूँ।

मु०---ऐ नेक बीबी, जिसका यहाँ घर ही न हो, वह किसके घर चला जाय। जिसके लिए घरों के दरवाज़े नहीं, सड़कें बन्द हो गयी हों, उसका कहाँ ठिकाना है। अगर तुम्हारे घर में जगह और दिल में दर्द हो, तो मुझे पनाह दो। शायद मैं कभी इस नेकी का बदला दे सकूँ।

तौआ---तुम कौन हो?

मु०---मैं वही बदनसीब आदमी हूँ, जिसकी आज घर-घर तलाश हो रही है। मेरा नाम मुस्लिम है।