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कर्बला

है, तो बचेंगे, चाहे सारी दुनिया दुश्मन हो जाय। मरना लिखा है, तो मरेंगे चाहे सारी दुनिया उन्हें बचाये।

[ उठकर तौआ की चारपाई की तरफ़ देखता है, और चुपके-से दरवाज़ा खोलकर चला जाता है। ]

तौआ---( चौंककर उठ बैठती है ) अाह! ज़ालिम, मा से भी दग़ा की। तुझे यह भी शर्म न आयी कि हुसैन का भाई मेरे मकान में गिरफ़्तार हो। आक़बत के दिन ख़ुदा को कौन-सा मुँह दिखायेगा। एक कसीर था कि अपनी और अपने बेटे की जान अपने मेहमान पर निसार कर दी, और एक बदनसीब मैं हूँ कि मेरा बेटा उसी मेहमान को दुश्मनों के हवाले करने जा रहा है!

[ बाहर शोर सुनायी देता है। मुस्लिम तौआ के कमरे में आते हैं। ]

मु०---तौआ, यह शोर कैसा है?

तौआ---या हज़रत! क्या बताऊँ, मेरा बेटा मुझसे दग़ा कर गया। वह बुरी सायत थी कि मैंने अपने घर में आपको पनाह दी। काश अगर मैंने उस वक्त बेमुरौवती की होती, तो आप इस खतरे में न पड़ते। अगर कभी किसी मा को बेटा जनने पर अफ़सोस हुअा है, तो वह बदनसीब मा मैं हूँ। अगर जानती कि यह यों दग़ा करेगा, तो ज़च्चेखाने ही में उसका गला घोंट देती।

मु॰---नेक बीबी, शरमिन्दा न हो। तेरे बेटे की ख़ता नहीं, सब कुछ वही हो रहा है, जो तक़दीर में था, और जिसकी मुझे ख़बर थी। लेकिन दुनिया में रहकर इन्साफ़, इज़्ज़त और ईमान के लिए प्राण देना हरएक सच्चे मुसलमान का फ़र्ज़ है। ख़ुदा नबियों के हाथों हिदायत के बीज बोता है, और शहीदों के खून से उसे सींचता है। शहादत वह अाला-से-अाला रुतबा है, जो खुदा इन्सान को दे सकता है। मुझे अफ़सोस सिर्फ़ यह है, कि जो बात एक दिन पहले होनी चाहिए थी, वह अाज दो ख़ुदा के बंदों का खून बहाने के बाद हो रही है।

[ ज़ियाद के आदमी बाहर से तौआ के घर में आग लगा देते हैं, और मुस्लिम बाहर निकलकर दुश्मनों पर टूट पड़ते हैं। ]