हुर---या हज़रत, अापको कूफ़ावालों ने दग़ा दी है!ज़ियाद और यज़ीद दोनो अापको क़त्ल करने की तैयारियाँ कर रहे हैं। चारो तरफ़ से फ़ौजें जमा की जा रही हैं। कूफ़ा के सरदार आपसे जंग करने के लिए तैयार बैठे हैं।
हुसैन---पहले यह बतलाओ कि तुम्हारे सिपाही क्यों इतने निढाल और परेशान हो रहे हैं?
हुर---या हज़रत, क्या अर्ज़ करूँ। तीन पहर से पानी का एक बूँद न मिला। प्यास के मारे सबों के दम लबों पर आ रहे हैं।
हुसैन---( अब्बास से ) भैया, प्यासों की प्यास बुझानी एक सौ नमाजों से ज़्यादा सबाब का काम है। तुम्हारे पास पानी हो, तो इन्हें पिला दो। क्या हुआ, अगर मेरे ये दुश्मन हैं, हैं तो मुसलमान---मेरे नाना के नाम पर मरनेवाले!
अब्बास---या हज़रत, आपके साथ बच्चे हैं, औरतें हैं, और पानी यहाँ उनका है।
हुसैन---इन्हें पानी पिला दो, मेरे बच्चों का ख़ुदा है।
[ अब्बास, अली अकबर, हबीब पानी की मशकें लाकर सिपाहियों को पानी पिलाते हैं। ]
अब्बास---हुर, अब यह बतलाओ कि तुम हमसे सुलह करना चाहते हो या जंग?
हुर---हज़रत, मुझे आपसे न जंग का हुक्म दिया गया है,न सुलह का। मैं सिर्फ इसलिए भेजा गया हूँ कि हज़रत को ज़ियाद के पास ले जाऊँ, और किसी दूसरी तरफ़ न जाने दूँ।
अब्बास---इसके मानी यह हैं कि तुम जंग करना चाहते हो। हम किसी ख़लीफ़ा या आमिल के हुक्म के पाबन्द नहीं हैं कि किसी ख़ास तरफ़ जायँ। मुल्क ख़ुदा का है। हम आज़ादी से जहाँ चाहेंगे, जायँगे। अगर हमको कोई रोकेगा, तो उसे काँटों की तरह रास्ते से हटा देंगे।
हुसैन---नमाज़ का वक्त आ गया। पहले नमाज़ अदा कर लें, उसके बाद और बातें होंगी। हुर, तुम मेरे साथ नमाज़ पढ़ोगे या अपनी फ़ौज के साथ?