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पृष्ठ:कर्बला.djvu/१२६

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कर्बला

किसी पानी से भीगी हुई बिल्ली की तरह नहीं निकलता। तब मैं रोने लगती हूँ, और ग़मनाक ख़याल मुझे चारों तरफ से घेर लेते हैं। तुमने न-जाने मुझ पर कौन-सा जादू कर दिया है कि मैं अपनी नहीं रही। मुझे ऐसा गुमान होता है कि हमारी बहार थोड़े ही दिनों की मेहमान है। मैं तुमसे इल्तजा करती हूँ कि मेरी तरफ़ से निगाहें न मोटी करना, वरना मेरा दिल पाश-पाश हो जायगा। मुझे यहाँ आने के पहले कभी न मालूम हुअा था कि मेरा दिल इतना नाज़ुक है।

वहब---मेरी कैफ़ियत इससे ठीक उल्टी है। मेरे दिल में एक नयी क़ूवत आ गयी है, मुझे खयाल होता है कि अब दुनिया की कोई फ़िक्र, कोई तर्ग़ीब, कोई आरजू मेरे दिल पर फ़तह नहीं पा सकती। ऐसी कोई ताकत नहीं है, जिसका मै मुक़ाबला न कर सकूँ। तुमने मेरे दिल की क़ूवत सौगुनी कर दी। यहाँ तक कि अब मुझे मौत का भी ग़म नहीं है। मुहब्बत ने मुझे दिलेर, बेखौफ़, मज़बूत बना दिया है, मुझे तो ऐसा गुमान होता है कि मुहब्बत क़ूवते-दिल की कीमिया है।

नसीमा---वहब, इन बातों से वहशत हो रही है, शायद हमारी तबाही के सामान हो रहे हैं। वहब, मैं तुम्हें न जाने दूँगी, कलाम पाक की क़सम, कहीं न जाने दूँगी। मुझे इसकी फ़िक्र नहीं कि कौन ख़लीफ़ा होता है और कौन अमीर। मुझे माल व जर की, इलाके व जागीर की मुतलक़ परवा नहीं। मैं तुम्हें चाहती हूँ, सिर्फ़ तुम्हें।

[ कमर का प्रवेश। ]

क़मर---वहब, देख, दरवाज़े पर ज़ालिम ज़ियाद के सिपाही क्या ग़ज़ब कर रहे हैं। तेरे वालिद को गिरफ्तार कर लिया है, और जामा मस्जिद की तरफ़ खींचे लिये जाते हैं।

नसीमा---हाय सितम, इसी लिए तो मुझे वहशत हो रही थी।

[ वहब उठ खड़ा होता है। नसीमा उसका हाथ पकड़ लेती है। ]

वहब---नसीमा, मैं अभी लौटा आता हूँ, तुम घबराओ नहीं।

नसीमा---नहीं-नहीं, तुम यहाँ मुझे जिन्दा छोड़कर नहीं जा सकते। मैं