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कर्बरला

ज़ियाद को जानती हूँ, तुमको भी जानती हूँ। ज़ियाद के सामने जाकर फिर तुम नहीं लौट सकते।

क़मर---बेटा, अगर नसीमा तुझे नहीं जाने देती, तो मत जा। मगर याद रख, तेरे चेहरे पर हमेशा के लिए स्याही का दाग़ लग जायगा। ख़ुद जाती हूँ। नसीमा, शायद हमारी-तुम्हारी फिर मुलाक़ात न हो, यह आखिरी मुलाक़ात है। रुख़सत। वहब, घर-बार तुझे सौंपा, खुदा तुझे नेकी की तौफ़ीक़ दे, तेरी उम्र दराज़ हो।

वहब---अम्मा, मैं भी चलता हूँ।

कमर--नहीं, तुझ पर अपनी बीवी का हक़ सबसे ज्यादा है।

वहब---नसीमा, खुदा के लिए....।

नसीमा नहीं। मेरे प्यारे आक़ा, मुझे ज़िन्दा छोड़कर नहीं!

[ क़मर चली जाती है। वहब सिर थामकर बैठ जाता है। ]

नसीमा---प्यारे, तुम्हारी मुहब्बत की ख़तावार हूँ, जो सज़ा चाहे दो। मुहब्बत खुदग़रज़ होती है। मैं अपने चमन को हवा के झोकों से बचाना चाहती हूँ। काश तक़दीर ने मुझे इस गुलज़ार में न बिठाया होता, मैंने चमन में अपना घोसला न बनाया होता, तो आज बर्क और सैयाद का इतना खौफ़ क्यों होता! मेरी बदौलत तुम्हें यह नदामत उठानी पड़ी, काश मैं मर जाती!

[ नसीमा वहब के पैरों पर सिर रख देती है। ]


चौथा दृश्य

[ आधी रात का समय। अब्बास हुसैन के ख़ेमे के सामने खड़े पहरा दे रहे हैं। हुर आहिस्ता से आकर ख़ेमे के करीब खड़ा हो जाता है। ]

हुर---( दिल में ) खुदा को क्या मुँह दिखाऊँगा? किस मुँह से रसूल के सामने जाऊँगा? आह गुलामी, तेरा बुरा हो। जिस बुज़ुर्ग ने हमें ईमान की रोशनी दी, खुदा की इबादत सिखायी, इन्सान बनाया, उसी के बेटे से