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पृष्ठ:कर्बला.djvu/१४२

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कर्बला

आदमी एक पैर दीन की किश्ती में रखता है, दूसरा पैर दुनिया की किश्ती में, उसे कभी साहिल पर पहुँचना नसीब न होगा।

साद---( दिल में ) एक तरफ़ 'रै' का इलाक़ा है, दूसरी तरफ़ नजात; एक तरफ दौलत और हुकूमत है, दूसरी तरफ़ लानत और अज़ाब! खुदा! मेरी तकदीर में क्या लिखा है। (प्रकट) या अमीर, मुझे एक दिन की मुहलत दीजिए। मैं कल इस मामले पर ग़ौर करके आपको जवाब दूँगा।

ज़ियाद---अच्छी बात है। सोच लो।

[ दोनो चले जाते हैं। ]


दूसरा दृश्य

[ प्रातःकाल का समय। साद का मकान। साद बैठा हुआ है। ]

साद---( मन में ) यार-दोस्त, अपने-बेगाने, अज़ीज, सब मुझे हुसैन के मुक़ाबले पर जाने से मना करते हैं। बीबी कहती है, अगर तेरे पास दुनिया में कुछ भी बाक़ी न रहे, तो इससे बेहतर है कि तू हुसैन का ख़ून अपनी गर्दन पर ले। आज मैंने ज़ियाद को जवाब देने का वादा किया है। सारी रात सोचते गुज़र गयी, और अभी तक कुछ फ़ैसला न कर सका। अजीब दोफ़स्ले में पड़ा हुआ हूँ। अपना दिल भी हुसैन के क़त्ल पर अमादा नहीं होता। गो मैंने यज़ीद के हाथों पर बैयत की पर हुसैन से मेरी कोई दुश्मनी नहीं है। कितना दीनदार, कितना बेलोस आदमी है। हमी ने उन्हें यहाँ बुलाया, बार-बार खत और क़ासिद भेजे, और आज जब वह यहाँ हमारी मदद करने आ रहे हैं, तो हम उनकी जान लेने पर तैयार हैं। हाय ख़ुदग़रज़ी! तेरा बुरा हो, तेरे सामने दीन-ईमान, नेक-बद की तरफ़ से आँखें बन्द हो जाती हैं। कितना गुनाहे-अज़ीम है। अपने रसूल के नेवासे की गर्दन पर तलवार चलाना! खुदा न करे, मैं इतना गुमराह हो जाऊँ। 'रै' का सूबा कितना ज़रखेज़ है। वहाँ थोड़े दिन भी रह गया, तो माला-माल हो जाऊँगा।