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पृष्ठ:कर्बला.djvu/१५३

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कर्बला

में तुम्हारी जागीर बढ़ेगी, 'रै' की हुकूमत हाथ आयेगी, दौलत हासिल होगी। लेकिन साद, हराम की दौलत ने बहुत दिनों तक किसी के साथ दोस्ती नहीं की, और न वह तुम्हारे लिए अपनी पुरानी आदत छोड़ेगी। हविस को छोड़ो, और मुझे अपने घर जाने दो।

साद---फिर तो मेरी ज़िन्दगी के दिन उँगलियों पर गिने जा सकते हैं।

हुसैन---अगर यह खौफ़ है, तो मैं तुम्हें अपने साथ ले जा सकता हूँ।

साद---या हज़रत, ज़ालिम मेरे मकान बरबाद कर देंगे, जो शहर में अपना सानी नहीं रखते।

हुसैन---सुभानल्लाह! तुमने वह बात मुँह से निकाली, जो तुम्हारी शान से बईद है। अगर हक़ पर कायम रहने की सज़ा में तुम्हारा मकान बरबाद किया जाय, तो ऐसा बड़ा नुकसान नहीं। हक़ के लिए लोगों ने इससे कहीं बड़े नुक़सान उठाये हैं, यहाँ तक कि जान से भी दरेग़ नहीं किया। मैं वादा करता हूँ कि मैं तुम्हें उससे अच्छा मकान बनवा दूँगा।

साद---या हज़रत, मेरे पास बड़ी ज़रखेज़ और आबाद जागीरें हैं, जो ज़ब्त कर ली जायँगी, और मेरी औलाद उनसे महरूम रह जायगी।

हुसैन---मैं हिजाज में तुम्हें उनसे ज़्यादा ज़रखेज़ और आबाद जागीरें दूँगा। इसका इतमीनान रखो कि मेरी ज़ात से तुम्हें कोई नुक़सान न पहुँचेगा।

साद---या हज़रत, आप पर मेरी जान निसार हो, मेरे साथ २२ हज़ार सवार और पैदल हैं। ज़ियाद ने उनके सरदारों से बड़े-बड़े वादे कर रखे हैं, मैं अगर आपकी तरफ़ आ भी जाऊँ, तो वे आपसे ज़रूर जंग करेंगे। इसी लिए मुनासिब यही है कि आप जो शर्तें पसन्द फ़रमायें, मैं ज़ियाद को लिख भेजूँ। मैं अपने ख़त में सुलह पर ज़ोर दूँगा, और मुझे यकीन है कि ज़ियाद मेरी तजवीज़ मंजूर कर लेगा।

हुसैन---खुदा तुम्हें इसका सबाब अाक़बत में देगा। मेरी पहली शर्त यह है कि मुझे मक्का लौटने दिया जाय, अगर यह न मंज़ूर हो, तो सरहदों की तरफ़ जाकर अमन से ज़िन्दगी बसर करने को राजी हूँ, अगर यह भी मंज़ूर न हो तो मुझे यज़ीद ही के पास जाने दिया जाय, और सबसे बड़ी