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कर्बला

शर्त यह है कि जब तक मैं यहाँ हूँ मुझे दरिया से पानी लेने की पूरी आजादी हासिल हो। मैं यज़ीद की बैयत किसी हालत से न क़बूल करूँगा, और तुमने मेरी वापसी की यह शर्त क़ायम न की, तो हम यहाँ शहीद हो जाना ही पसन्द करेंगे। लेकिन अग़र यह मंशा है कि मुझे क़त्ल ही कर दिया जाय, तो मैं अपनी जान को गिराँ-से-गिराँ क़ीमत पर बेचूँगा।

साद---हज़रत आपकी शर्ते बहुत माक़ूल हैं।

हुसैन---मैं तुम्हारे जवाब का कब तक इन्तज़ार करूँ?

साद---सुबह आफ़ताब की रोशनी के साथ मेरा क़ासिद आपकी खिदमत में हाज़िर होगा।

[ दोनों आदमी अपनी-अपनी फ़ौज की तरफ़ लौटते हैं। ]



पाँचवाँ दृश्य

[ ८ बजे रात का समय। ज़ियाद की ख़ास बैठक। शिमर और ज़ियाद बातें कर रहे हैं। ]

ज़ियाद---क्या कहते हो। मैंने सख्त ताक़ीद कर दी थी कि दरिया पर हुसैन का कोई आदमी न आने पाये।

शिमर---वजा है। मगर मैं तो हुसैन के आदमियों को दरिया से पानी लाते बराबर देखता रहा हूँ; और, शायद मेरा दरिया की हिफ़ाज़त के लिए अपनी ज़िम्मेदारी पर हुक्म जारी करना साद को बुरा लगा।

ज़ियाद---साद पर मुझे इतमीनान है। मुमकिन है, उसे लोगों को प्यासों मरते देखकर रहम आ गया हो, और हक़ तो यह है कि शायद मैं भी मौक़े पर इतना बेरहम नहीं हो सकता। इससे यह नहीं साबित होता कि साद की नीयत डाँवाडोल हो रही है।

शिमर---मैं साद की शिकायतें करने के लिए आपकी ख़िदमत में नहीं हाज़िर हुअा हूँ, सिर्फ़ वहाँ की हालत अर्ज़ करनी थी। हुसैन ने अाज साद को मुलाकात करने को भी तो बुलाया है। देखिए, क्या बातें होती हैं।