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पृष्ठ:कर्बला.djvu/१५७

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कर्बला



शिमर---इसमें हुजूर ने ऐसा कोई कलमा तो नहीं लिखा, जिसमें साद को शुबहा हो कि मेरे इशारे से लिखा गया है?

ज़ियाद---मुतलक़ नहीं। हाँ, यह अलबत्ता लिख दिया है कि अगर तूने सिरताबी की, तो तेरी जगह शिमर लश्कर का सरदार होगा।

शिमर---हुजूर की क़द्रदानी की कहाँ तक तारीफ़ करूँ।

ज़ियाद---इसकी ज़रूरत नहीं। अगर साद मेरे हुक्म की तामील करे, तो बेहतर, नहीं तो वह माजूल होगा, और तुम लश्कर के सरदार होगे। पहला काम जो तुम करोगे, वह साद का सिर क़लम करके मेरे पास भेजना होगा। यही तुम्हारी बहाली की बिस्मिल्लाह होगी।

शिमर---( उठकर ) आदाब बजा लाता हूँ।

[ शिमर बाहर चला जाता है, और ज़ियाद मकान में आराम करने जाता है। ]


छठा दृश्य

[ प्रातःकाल। शाम का लश्कर। हुर और साद घोड़ों पर सवार फ़ौज का मुआयना कर रहे हैं। ]

हुर---अभी तक ज़ियाद ने आपके ख़त का जवाब नहीं दिया?

साद---उस के इन्तज़ार मे रात-भर आँखें नहीं लगी। जब किसी की आहट मिलती थी, तो गुमान होता था कि क़ासिद है। मुझे तो यक़ीन है कि अमीर ज़ियाद मेरी तजवीज़ मजूर कर लेंगे।

हुर---काश ऐसा होता! अगर जंग की नौबत आयी, तो फ़ौज के कितने ही सिपाही लड़ने से इनकार कर देगे।

[ सामने से शिमर घोड़ा दौड़ाता हुआ आता है। ]

साद---लो, क़ासिद भी आ गया। ख़ुदा करे, अच्छी ख़बर लाया हो। अरे, यह तो शिमर है।