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कर्बला

दनी खैरात कर दूँगा। पियादा पा हज करूँगा, और रसूल पाक की क़ब्र पर बैठकर रोऊँगा, गुनहगारों की ख़ताएँ मुआफ़ करूँगा, और एक चींटी को भी ईज़ा न पहुँचाऊँगा। हाय! ज़ालिम शिमर सोचने का मौक़ा भी नहीं देना चाहता। फ़ौज़ें तैयार हो रही हैं। क़ीस, हज्जाज, शीस, अशअस अपने-अपने आदमियों को स़फ़ों में खड़े करने लगे। वह लो, नक्क़ारे पर चोट भी पड़ गयी।

हुर---मैं भी जाता हूँ, अपने आदमियों को सँभालूँ।

[ आहिस्ता-आहिस्ता जाता है। ]

साद---ऐ खुदा! बहुत बेहतर होता कि तूने मुझे शिमर की तरह स्याह बातिन बनाया होता कि अज़ाब और सबाब की कशमकश से आज़ाद हो जाता, या हानी और कसीर का-सा दिल दिया होता कि अपने को ग़ैर पर कुरबान कर देता। कमज़ोर इन्सान भी जानता है कि मुझे क्या करना चाहिए, और क्या नहीं कर सकता। वह ग़ुलाम से भी बदतर है, जिसका अपनी मर्ज़ी पर कोई अधिकार नहीं। मेरे क़बीलेवालों ने भी सफ़बंदी शुरू कर दी। मुझे भी अब जाकर अपनी जगह पर सबसे आगे चलना चाहिए, और वही करना चाहिए, जो शिमर कराये, क्योंकि अब मैं फ़ौज का सरदार नहीं हूँ, शिमर है।

[ आहिस्ता-आहिस्ता जाकर फ़ौज के सामने खड़ा हो जाता है। ]

शिमर---( उच्च स्वर से ) ऐ ख़िलाफ़त को ज़िन्दा रखने के लिए अपने तई क़ुरबान करनेवाले बहादुरो, ख़ुदा का नाम लेकर क़दम आगे बढ़ाओ। दुश्मन तुम्हारे सामने है। वह हमारे रसूल पाक का नेवासा है, और उस रिश्ते से हम सब ताजीम से उसके आगे सिर झुकाते हैं। लेकिन जो आदमी हिर्स का इतना बन्दा है कि रसूल पाक के हुक्म का, जो उन्होंने ख़िलाफ़त को अब तक कायम रखने के लिए दिया था, पैरों-तले कुचलता है, और जो क़ौम की बैयत की परवा न करके अपने विरासत के हक़ के लिए ख़िलाफ़त को खाक में मिला देना चाहे, वह रसूल का नेवासा होते हुए भी मुसलमान नहीं है। हमारी निगाहों में रसूल के हुक्म की इज़्ज़त उसके नेवासे की इज़्ज़त से कहीं ज्यादा है। हमारा फ़र्ज़ है कि हमने जिस खलीफ़ा की