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पृष्ठ:कर्बला.djvu/१६५

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कर्बला

खंदकें खोद डाली गयीं, उनमें लकड़ियाँ भर दी गयीं, नक्क़ारा बजवा दूँ?

हुसैन---नहीं, अभी नहीं। मैं जंग में पहले क़दम नहीं बढ़ाना चाहता। मैं एक बार फिर सुलह की तहरीक करूँगा। अभी तक मैंने शाम के लश्कर से कोई तकरीर नहीं की, सरदारों ही से काम निकालने की कोशिश करता रहा। अब मैं जवानों से रूबरू बातें करना चाहता हूँ। कह दो, साँडनी तैयार करे।

अब्बास---जैसा इर्शाद।

हुसैन---( दुआ करते हुए ) ऐ ख़ुदा! तू ही डूबती हुई किश्तियों को पार लगानेवाला है। मुझे तेरी ही पनाह है, तेरा ही भरोसा है; जिस रंज से दिल कमज़ोर हो, उसमें तेरी ही मदद माँगता हूँ; जो आफ़त किसी तरह सिर से न टले, जिसमें दोस्तों से काम न निकले, जहाँ कोई हीला न हो, वहाँ तू ही मेरा मददगार है।

[ खेमे से बाहर निकलते हैं। हबीब और ज़हीर आपस में नेज़ेबाज़ी का अभ्यास कर रहे हैं। ]

हबीब---या हज़रत, खुदा से मेरी यही दुआ है कि यह नेज़ा साद के जिगर में चुभ जाय, और 'रै' की सूबेदारी का अरमान उसके ख़ून के रास्ते निकल जाय।

जहीर---उसे सूबेदारी जरूर मिलेगी। जहन्नुम की या 'रै' की, इसका फ़ैसला मेरी तलवार करेगी।

हबीब---वाह! वह मेरा शिकार है, उधर निगाहें न उठाइएगा। आपके लिए मैंने शिमर को छोड़ दिया।

जहीर---बखुदा, वह मेरे म़ुकाबिले आये, तो मैं उसकी नाक काटकर छोड़ दूँ। ऐसे बदनीयत आदमी के लिए जहन्नुम से ज्यादा तकलीफ़ दुनिया ही में है।

अब्बास---और मेरे लिए कौन-सा शिकार तजवीज़ किया?

हबीब---आपके लिए ज़ियाद हाज़िर है।

हुसैन---और मेरे लिए? क्या मैं ताकता ही रहूँगा?