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कर्बला

तक दुश्मनों के सीने में अपनी तेज बर्छियाँ न चुभा लें। अगर मेरे पास तलवार भी न होती, तो मैं आपकी हिमायत पत्थरों से करता।

अब्दुल्लाह कलवी---अगर मुझे इसका यक़ीन हो जाय कि मैं आपकी हिमायत में जिन्दा जलाया जाऊँगा, और फिर ज़िन्दा होकर जलाया जाऊँगा। और यह अमल सत्तर बार होता रहेगा, तो भी मैं आपसे जुदा नहीं हो सकता। आपके क़दमों पर निसार होने से जो रुतबा हासिल होगा, वह ऐसी-ऐसी बेशुमार ज़िन्दगियों से भी नहीं हासिल हो सकता।

ज़हीर---हज़रत, आपने ज़बाने-मुबारक से ये बातें निकालकर मेरी जितनी दिलशिकनी की है, उसका काफ़ी इज़हार नहीं कर सकता। अगर हमारे दिल दुनिया की हविस से मग़लूब भी हो जायँ, तो हमारे क़दम किसी दूसरी तरफ़ जाने से गुरेज़ करेंगे। क्या आप हमें दुनिया में कस्याह और बेग़ैरत बनाकर ज़िन्दा रखना चाहते हैं?

अली असगर---आप तो मुझे शरीक किये बग़ैर कभी कोई चीज़ न खाते थे, क्या जन्नत के मजे अकेले उठाइएगा? शमा जलवा दीजिए हमें इस तारीकी में आप नज़र नहीं आते।

हुसैन---आह! काश रसूले-पाक अाज ज़िन्दा होते और देखते कि उनकी औलाद और उनकी उम्मत हक़ पर कितने शौक़ से फ़िदा होती है! ख़ुदा से मेरी यही इल्तजा है कि इस्लाम में हक़ पर शहीद होनेवालों की कभी कमी न रहे। असग़र, बेटा अाओ, तुम्हारे बाप की जान पर फ़िदा हो, हम-तुम साथ-साथ जन्नत के मेवे खायेंगे। दोस्तो, आओ, नमाज़ पढ़ लें। शायद यह हमारी आख़िरी नमाज़ हो।

[ सब लोग नमाज़ पढ़ने लगते हैं। ]


आठवाँ दृश्य

[ प्रातःकाल हुसैन के लश्कर में जंग की तैयारियां हो रही हैं। ]

अब्बास---खेमे एक दूसरे से मिला दिये गये, और उनके चारों तरफ़