पृष्ठ:कर्बला.djvu/१६७

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हज्जाज---मैंने आपको कोई खत नहीं लिखा।

हुसैन---क़ीस, तुम्हें भी खत लिखने से इनकार है?

क़ीस---मैंने कब आपसे फ़रियाद की थी?

हुसैन---और शिमर, तुमने तो दस्तखत किया था?

शिमर---सरासर ग़लत है, झूठ है।

हुसैन---खुदा गवाह है कि मैं अपनी ज़िन्दगी में कभी झूठ नहीं बोला, लेकिन आज यह दाग़ भी लगा।

क़ीस----आप यज़ीद की बैयत क्यों नहीं कर लेते कि इस्लाम हमेशा के लिए फ़ितना और फ़साद से पाक हो जाय?

हुसैन---क्या इसके सिवा मसालहत की और कोई सूरत नहीं है?

शिमर---नहीं, और कोई दूसरी सूरत नहीं है?

हुसैन---तो इस शर्त पर सुलह करना मेरे लिए ग़ैरमुमकिन है। खुदा की क़सम में ज़लील होकर तुम्हारे सामने सिर न झुकाऊँगा, और न खौफ़ मुझे यजीद की बैयत क़बूल करने पर मजबूर कर सकता है। अब तुम्हें अख्तियार है। हम भी जंग के लिए तैयार हैं।

शिमर---पहला तीर चलाने का सवाब मेरा है।

[ हुसैन पर तीर चलाता है। ]

किसी तरफ़ से आवाज़ आती है---जहन्नुम में जाने का फ़ख भी पहले तुझी को होगा।

[ हुसैन ऊँटनी को अपनी फ़ौज की तरफ़ फेर देते हैं। हुर अपनी फ़ौज से निकलकर आहिस्ता-आहिस्ता हुसैन के पीछे चलते हैं। ]

शिमर---वल्लाह, हुर, तुम्हारा इस तरह अाहिस्ता-आहिस्ता अपने तई तौल-तौलकर चलना मेरे दिल में शुबहा पैदा कर रहा है। मैंने तुमको कभी लड़ाई में इस तरह काँपते हुए चलते नहीं देखा।

हुर---अपने को जन्नत और जहन्नुम के लिए तौल रहा हूँ, और हक़ यह है कि मैं जन्नत के मुकाबले में किसी चीज़ को नहीं समझता, चाहे कोई मार ही क्यों न डाले। ( घोड़े को एक एँड लगाकर हुसैन के पास पहुँच जाते हैं ] ऐ फ़र्ज़न्दे-रसूल! मैं भी आपका हमराह हूँ। खुदाबंद मुझे आप पर