सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कर्बला.djvu/१६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१६८
कर्बला

फिद़ा करे, मैं वही हूँ, जिसने आपको रास्ते से वापस करने की कोशिश की थी। खुदा की क़सम, मुझे उम्मीद न थी कि ये लोग आपके साथ यह बर्ताव करेंगे, और सुलह की कोई शर्त न क़बूल करेंगे, वरना मैं आपको इधर आने ही न देता, जब तक आप मेरे सिर पर न आते। अब इधर से मायूस होकर अापकी खिदमत में हाजिर हुआ हूँ कि आपकी मदद करते हुए अपने तई अापके कदमों पर निसार कर दूँ। क्या आपके नज़दीक मेरी तौबा क़बूल होगी।

हुसैन---खुदा से मेरी दुअा है कि वह तुम्हारी तौबा क़बूल करे।

हुर---अब मुझे मालूम हो गया कि मैं यज़ीद से अपनी बैयत वापस लेने में कोई गुनाह नहीं कर रहा हूँ।

[ दोनो चले जाते हैं। तीरों की वर्षा होने लगती है। ]


नवाँ दृश्य

[ शाम का वक्त। कूफ़ा का एक गाँव। नसीमा ख़जूर के बाग़ में ज़मीन पर बैठी हुई गाती है। ]
दबे हुओं को दबाती है ऐ ज़मीने-लहद,
यह जानती हूँ कि दम जिस्म नातवाँ में नहीं।
कफ़स में जी नहीं लगता है आह फिर भी मेरा,
यह जानती हूँ कि तिनका भी आशियाँ में नहीं।
उजाड़ दे कोई या फूँक दे उसे बिजली,
यह जानती हूँ कि रहना अब आशियाँ में नहीं।
खुद अपने दिल से मेरा हाल पूछ लो सारा,
मेरी ज़बाँ से मज़ा मेरी दास्ताँ में नहीं।
करेंगे आज से हम ज़ब्त, चाहे जो कुछ हो,
यह क्या किलब पे फ़ुग़ाँ और असर फ़ग़ाँ में नहीं।
ख़याल करके खुद अपने किये को रोता हूँ,
तबाहियों के सिवा कुछ मेरे मकाँ में नहीं।