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कर्बला

सिपाही---तो फिर आओ, साथ चलें।

वहब---मेरे साथ मस्तूरात भी हैं। तुम लोग बढ़ो, हम भी आते हैं।

[ फ़ौज चली जाती है। ]

नसीमा---वह साहसराय कौन है?

वहब---यह तो नहीं कह सकता, पर इतना कह सकता हूँ कि ऐसा हक़-परस्त, दिलेर, इन्साफ़ पर निसार होनेवाला आदमी दुनिया में न होगा। बेकसों की हिमायत में कभी उसे पीछे क़दम हटाते नहीं देखा। मालूम नहीं, किस मज़हब का आदमी है, पर जिस मज़हब और जिस क़ौम में ऐसी पाक रूहें पैदा हों, वह दुनिया के लिए बरकत है।

नसीमा---इनके भी बाल-बच्चे होंगे?

वहब---बहुत बड़ा खानदान है। सात तो भाई ही हैं।

नसीमा---और मुसलमान न होते हुए भी ये लोग हज़रत हुसैन को इमदाद के लिए जा रहे हैं?

वहब---हाँ, और क्या!

नसीमा---तों हमारे लिए कितनी शर्म की बात है कि हम यों पहलूतिहीं करें।

वहब---प्यारी नसीमा, चले चलेंगे। दो-चार दिन तो ज़िन्दगी की बहार लूट लें।

नसीमा---नहीं वहब, एक लहमे की भी देर न करो। खुदा हमें जन्नत में फिर मिलायेगा, और तब हम अब्द तक ज़िन्दगी की बहार लूटेंगे।

वहब---नसीमा, अाज और सब्र करो।

नसीमा---एक लहमा भी नहीं। वहब, मुझे अब इम्तहान में न डालो। साँडनी लाओ, फौरन चलो।