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कर्बला

नसीमा---काश ज़रा देर क़ब्ल पा जाते, तो अब्बाजान की आखिरी दुआएँ मिल जातीं।।

वहब---हमारी बदनसीबी!

नसीमा---मैं जानती हूँ, तुम हमेशा के लिए खैरबाद कहने आये हो। जाओ प्यारे, और एक सपूत बेटे की तरह अपने वालिद का नाम रोशन करो। काश औरतों पर ज़िहाद हराम न होता, तो मैं भी तुम्हारे ही साथ अपने को हक की हिमायत में निसार कर देती। जब से मैंने फ़र्ज़न्दे-रसूल की पाक सूरत देखी है, मुझे ऐसा मालूम हो रहा है कि मेरा दिल रोशन हो गया है, और उस रोशनी में ज़िन्दगी की तमन्नाएँ और ख़्वाहिशें नज़र से मिटती जाती हैं। जाओ प्यारे, जाओ, और हक़ पर क़ुरबान हो जाओ। नसीमा जब तक जियेगी, तुम्हारे मज़ार पर फ़ातिहा और दरूद पड़ेगी। जाओ, जन्नत में मुझे भूल न जाना। मैंने हवस के दाम में फँसकर तुम्हें फर्ज़ के रास्ते से हटा दिया था। रसूल पाक से कहना, मेरा गुनाह मुआफ़ करें। जाओ, इन अाँसुओं का ख़याल न करो, वरना ये आँसू तुम्हारे जोश को बुझा देंगे। मैं अभी बहुत दिन तक रोऊँगी, तुम इसका ग़म न करना। जाओ, तुम्हें खुदा को सौंपा--आह! दिल फटा जाता है। कैसे सब्र करूँ?

[ वहब आँसू पोंछता हुआ बाहर जाता है। ]

क़मर---( अन्दर आकर ) बेटी, तुझे गले से लगा लूँ, और तुझ पर अपनी जान फ़िदा, तूने खानदान की आबरू रख ली।

नसीमा---अम्माजान, रसूल पाक ने अगर कोई बेइन्साफ़ी की, तो वह यही है कि औरतों पर जिहाद हराम कर दिया, वरना इस वक्त मैं वहब के पहलू में होती। देखिए, दुश्मन उन पर चारों तरफ़ से कितनी बेदी से नेज़े और तीर फेंक रहे हैं। किसी की हिम्मत नहीं है कि उनके सामने ख़म ठोककर आये। आह! देखिए, उनके हाथ कितनी तेज़ी से चल रहे हैं। जिस पर उनका एक हाथ पड़ जाता है, वह फिर नहीं उठता, दुश्मन भागे जाते हैं। हा बुज़दिलो, नामर्दो! वह इधर चले आ रहे हैं, बदन ख़ून से तर है, सिर पर भी ज़ख्म लगे हैं।

[ वहब आकर ख़ेमे के सामने खड़ा हो जाता है। ]