पृष्ठ:कर्बला.djvu/१८५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१८५
कर्बला

जय जय विश्व-विदांवर जय विश्रुतनामी,
जय जय धर्म-धुरंधर जय श्रुति-पथगामी। जय भारत....
अजित अजेय अलौकिक अतुलित बलधामा ,
पूरन प्रम-पयोनिधि शुभ गुन-गन-ग्रामा। जय भारत....
हे प्रिय पूज्य परम मन नमो-नमो देवा ,
बिनवत अधम पापि जन ग्रहन करहु सेवा। जय भारत....

अब्बास---ग़जब के जाँबाज हैं। अब मुझ पर यह हक़ीक़त खुली कि इस्लाम के दायरे के बाहर भी इस्लाम है। ये सचमुच मुसलमान हैं, और रसूल पाक ऐसे आदमियों की शफ़ाअत न करें, मुमकिन नहीं।

हुसैन---कितनी दिलेरी से लड़ रहे हैं!

अब्बास---फौज में बेखौफ घुसे जाते हैं। ऐसी बेजिगरी से किसी को मौत के मुँह में जाते नहीं देखा।

अली अकबर---ऐसे पाँच सौ आदमी भी हमारे साथ होते, तो मैदान हमारा था।

हुसैन---आह! वह साहसराय घोड़े से गिरे। मक्कार शिमर ने पीछे से वार किया। इस्लाम को बदनाम करनेवाला, मूज़ी!

अब्बास---वह दूसरा भाई भी गिरा।

हुसैन---इनके रिवाज के मुताबिक लाशों को जलाना होगा। चिता तैयार कराओ।

अली अक०---तीसरा भाई भी मारा गया।

अब्बास---जालिमों ने चारों तरफ़ से घेर लिया, मगर किस ग़ज़ब के तीरन्दाज़ हैं। तीर से शोला-सा निकलता है।

अली अक०---अल्लाह, उनके तीरों से भाग निकल रही है। कोहराम मच गया, साही जमैयत परेशान होकर भागी जा रही है।

अब्बास---चारों सूरमा दुश्मन के ख़ेम़ो की तरफ़ जा रहे हैं। फौज़ काई की तरह फटती जाती है। वह ख़ेमों से शोले निकलने लगे!

अली अक०---या खुदा, चारों देखते-देखते ग़ायब हो गये।

हुसैन---शायद उनके सामने कोई खंदक खोदी गयी है।