अब्बास---जी हाँ, यही मेरा भी ख़याल है।
हुसैन---चिताएँ तैयार कराओ। अगर फ़रेब न किया जाता, तो ये सारी फौज को खाक कर देते। तीर हैं या मोजज़ा।
अब्बास---ख़ुदा के ऐसे बन्दे भी हैं, जो बिला ग़रज़ हक़ पर सिर कटाते हैं।
हुसैन---ये उस पाक मुल्क के रहनेवाले हैं, जहाँ सबसे पहले तौहीद की सदा उठी थी! खुदा से मेरी दुआ है कि इन्हें शहीदों में ऊँचा रुतबा दे। वह चिता में शोले उठे! ऐ खुदा, यह सोज़ इस्लाम के दिल से कभी न मिटे, इस क़ौम के लिए हमारे दिलेर हमेशा अपना खून बहाते रहें, यह बीज, जो आज आग में बोया गया है, कयामत तक फलता रहे।
[ जैनब अपने ख़ेमे में बैठी हुई है। शाम का वक़्त। ]
जैनब---(स्वगत) अब्बास और अली अकबर के सिवा अब भैया के कोई रफ़ीक़ बानी नहीं रहा। सब लोग उन पर निसार हो गये। हाय, कासिम-सा जवान, मुस्लिम के बेटे, अब्बास के भाई, भैया इमाम हसन के चारों बेटे, सब दाग़ दिये गये। देखते-देखते हरा-भरा बाग़ वीरान हो गया, गुलज़ार बस्ती उजड़ गयी। सभी माताओं के कलेजे ठंडे हुए। बापों के दिल बाग़-बाग़ हुए। मैं ही बदनसीब नामुराद रह गयी। खुदा ने मुझे भी दो बेटे दिये हैं, पर जब वे काम ही न आये, तो उनको देखकर जिगर क्या ठंडा हो। इससे तो यही बेहतर होता कि मैं बाँझ ही रहती। तब यह बेवफ़ाई का दाग़ तो माथे पर न लगता। हुसैन ने इन लड़कों को अपने लड़के की तरह समझा, लड़कों को तरह पाला, पर वे इस मुसीबत में, तारीकी में, साए की तरह साथ छोड़े देते हैं, दग़ा कर रहे हैं। हाँ, यह दग़ा नहीं तो और क्या है? आखिर भैया अपने दिल में क्या समझ रहे होंगे। कहीं यह ख़याल न करते हों कि मैंने ही उन्हें मैदान में जाने से मना कर दिया है। यह ख़याल