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कर्बला

हमशीर का ग़म है किसी भाई को गवारा?
मजबूर है, लेकिन असद अल्लाह का प्यारा।
रंज और मुसीबत से कलेजा है दो पारा;
किससे कहूँ, जैसा मुझे सदमा है तुम्हारा।
इस घर की तबाही के लिए रोता है शब्बीर;
तुम छुटती नहीं मा से जुदा होता है शब्बीर।

[ हाथ उठाकर दुआ करते हैं। ]

या रब, है यह सादात का घर तेरे हवाले;
राँड़ हैं कई ख़स्ता जिगर तेरे हवाले।
बेकस का है बीमार, पिसर तेरे हवाले;
सब हैं मेरे दरिया के गुहर तेरे हवाले।

[ मैदान की तरफ़ जाते हैं। ]

शिमर---( फौज से ) खबरदार, खबरदार, हुसैन आये। सब-के-सब सँभल जाओ, और समझ लो, अब मैदान तुम्हारा है।

[ हुसैन फ़ौज के सामने खड़े होकर कहते हैं: ]
बेटा हूँ अली का व नेवासा रसूल का।
मा ऐसी कि सब जिसकी शफ़ाअत के हैं मुहताज,
बाप ऐसा, सनमख़ानों को जिसने किया ताराज। बेटा हूँ....
लड़ने को अगर हैदर सफ़दर न निकलते,
बुत घर से खुदा के कभी बाहर न निकलते। बेटा हूँ....
किस ज़ंग में सीने को सिपर करके न आये?
किस फ़ौज की सफ़ ज़ेर व जबर करके न आये? बेटा हूँ...
हम पाक न करते, तो जहाँ पाक न होता,
कुछ खाक की दुनिया में सिवा खाक न होता। बेटा हूँ....
यह शोर अज़ाँ का सहरोशाम कहाँ था?
हम अर्श पै जब थे, तो यह इस्लाम कहाँ था? बेटा हूँ....
लाज़िम है कि सादात की इमदाद करो तुम,
ऐ ज़ालिमो, इस घर को न बरबाद करो तुम! बेटा हूँ ...