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पृष्ठ:कर्बला.djvu/१९४

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कर्बला

[ शिमर एक तीर मारता है, जो असग़र के गले को छेदता हुआ हुसैन के बाजू में चुभ जाता है। हुसैन जल्दी से तीर को निकालते हैं, और तीर निकलते ही असग़र की जान निकल जाती है। हुसैन असग़र को लिये फिर खेमे में आते हैं। ]

शहरबानू---हाय मेरा फूल-सा बच्चा!

हुसैन---हमेशा के लिए इसकी प्यास बुझ गयी। ( ख़ून से चिल्लू भरकर आसमान की तरफ़ उछालते हुए ) इन सब आफ़तों का गवाह खुदा है। अब कौन है, जो ज़ालिमों से इस ख़ून का बदला ले?

[ सज्जाद चारपाई से उठकर, लड़खड़ाते हुए, मैदान की तरफ़ चलते हैं। ]

जैनब---अरे बेटा, तुममें तो खड़े होने की भी ताब नहीं, महीनों से आँखें नहीं खोलीं, तुम कहाँ जाते हो?

सज्जाद---बिस्तर पर मरने से मैदान में मरना अच्छा है। जब सब जन्नत पहुँच चुके, तो मैं यहाँ क्यों पड़ा रहूँ?

हुसैन-बेटा, खुदा के लिए बाप के ऊपर रहम करो, वापस आओ। रसूल की तुम्ही एक निशानी हो। तुम्हारे ही ऊपर औरतों की हिफ़ाज़त का बार है। आह! और कौन है, जो इस फ़र्ज़ को अदा करे! तुम्हीं मेरे जाँनशीन हो, इन सबको तुम्हारे हवाले करता हूँ। खुदा हाफ़िज़! ऐ जैनब, ऐ कुलसुम, ऐ सकीना, तुम लोगों पर मेरा सलाम हो कि यह आख़िरी मुलाकात है।

[ जैनब रोती हुई हुसैन से लिपट जाती है। ]

सकीना---अब किसका मुँह देखकर जिऊँगी?

हुसैन---जैनब!

मरकर भी न भूलूँगा मैं एहसान तुम्हारे;
बेटों को भला कौन बहन भाई पै वारे।
प्यार न किया उनको, जो थे जान से प्यारे,
बस, मा की मुहब्बत के ये अंदाज़ हैं सारे।
फ़ाके में हमें बर्छियाँ खाने की रज़ा दो।;
बस, अब यही उल्फ़त है कि जाने की रज़ा दो।