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पृष्ठ:कर्बला.djvu/३१

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कर्बला

अब्दुशम्स-इन हाशिमियों से हमें उस्मान के खून का बदला लेना है।

यजीद-खजाना खोल दो, और रियाया का दिल अपनी मुट्ठी में कर लो। रुपया खुदा के खौफ को दिल से दूर कर देता है। सारे शहर की दावत करो। कोई मुज़ायका नहीं, अगर खज़ाना खाली हो जाय । हर एक सिपाही को निहाल कर दी । और, अगर इतनी रियायतें करने पर भी कोई तुमसे खिंचा रहे, तो उसे क़त्ल कर दो। मुझे इस वक़्त रुपए की ताकत से धर्म और भक्ति को जीतना है।

[हिन्दा का प्रवेश]

यजीद-हिन्दा, तुमने इस वक्त कैसे तकलीफ़ की ?

हिन्दा-या अमीर ! मैं आपकी ख़िदमत में सिर्फ इसलिए हाज़िर हुई हूँ कि आपको इस इरादे से बाज़ रखू । आपको अमीर मुत्रा- बिया की कसम, अपने दीन को, अपनी नजात को, अपने ईमान को यों न ख़राब कीजिए। जिस नबी से आपने इस्लाम की रोशनी पायी, जिसकी ज़ात से आपको यह स्तबा मिला, जिसने आपकी आत्मा को अपने उपदेशों से जगाया, जिसने आपको अज्ञान के गढ़े से निकालकर आफताब के पहलू में बिठा दिया, उसी खुदा के भेजे हुए बुजुर्ग के नवासे का खून बहाने के लिए आप आमादा हैं!

यजीद-हिन्दा, खामोश रहो।

हिन्दा-कैसे खामोश रहूँ। आपको अपनी आँखों से जहन्नुम के ग़ार में गिरते देखकर खामोश नहीं रह सकती। आपको मालूम नहीं कि रसूल की, आत्मा स्वर्ग में बैठी हुई आपके इस अन्याय को देख- कर आपको लानत दे रही होगी । और, हिसाब के दिन आप अपना मुँह उन्हें न दिखा सकेंगे । क्या आप नहीं जानते, आप अपनी नजात का दरवाजा बन्द कर रहे हैं।

यजीद-हिन्दा, ये मज़हब की बातें मज़हब के लिए हैं, दुनिया के लिए नहीं । मेरे दादा ने इस्लाम इसलिए कबूल किया था कि इससे उन्हें दौलत और इज्ज़त हाथ आती थी। नजात के लिए वह इस्लाम पर ईमान नहीं साये थे, और न मैं ही इस्लाम को नजात का जामिन समझने को तैयार हूँ।