हिन्दा-अमीर, खुदा के लिए यह कुवाक्य मुँह से न निकालो । आपको मालम है, इस्लाम ने अरब से अधर्म के अंधेरे को कितनी आसानी से दूर कर दिया। अकेले एक आदमी ने काफिरों का निशान मिटा दिया। क्या खुदा की मर्जी बिना यह बात हो सकती थी ? कभी नहीं । तुम्हें मालूम है कि । रसूल हुसैन को कितना प्यार करते थे ? हुसैन को वह कन्धों पर बिठाते और अपनी नूरानी डाढ़ी को उनके हाथों से नुचवाते थे । जिस माथे को तुम अपने पैरों पर झुकाना चाहते हो, उसके रसूल बोसे लेते थे। हुसैन से दुश्मनी करके तुम अपने हक़ में काँटे बो रहे हो । खिलाफ़त उसकी है, जिसे पंच दे, यह किसी की मीरास नहीं है । तुम खुद मदीने जाओ, और देखो, कौम किस पर खिलाफत का बार रखती है। उसके हाथों पर बैयत लो। अगर कौम तुमको इस रुतबे पर बैठा दे, तो मदीने में रहकर शौक से इस्लाम की खिदमत करो। मगर खुदा के वास्ते यह हंगामा न उठाओ (जाती है)।
यजीद-सरजून रूमी को बुला लो।
यजीद-आपने वालिद मरहूम की खिदमत जितनी वफादारी के साथ की, उसके लिए मैं आपका शुक्रगुजार हूँ। मगर इस वक्त मुझे आपकी पहले से कहीं ज्यादा ज़रूरत है । बसरे की सूबेदारी के लिए आप किसे तजवीज़ करते हैं।
रूमी-खुदा अमीर को सलामत रखे । मेरे खयाल में अब्दुल्लाह बिनज़ियाद से ज्यादा लायक आदमी आपको मुश्किल से मिलेगा। ज़ियाद ने अमीर मुआबिया की जो ख़िदमत की, वह मिटाई नहीं जा सकती। अन्दुल्लाह उसी बाप का बेटा और खानदान का उतना ही सच्चा गुलाम है। उसके पास फौरन् कासिद भेज दीजिए।
यजीद-मुझे ज़ियाद के बेटे से शिकायत है कि उसने बसरेवालों के इरादों की मुझे इत्तिला नहीं दी। और, मुझे यकीन है कि बसरे- वाले मुझसे बग़ावत कर जायेंगे।
रूमी-या अमीर, आपका ज़ियाद पर शक करना बेजा है। आपके -मददगार आपके पास खुद बखुद न आयेंगे। वह तलाश करने से, मिन्नत