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पृष्ठ:कर्बला.djvu/४०

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कर्बला

[ दोनों हज़रत मुहम्मद की कब्र के सामने खड़े हो जाते हैं,हाथ बांधकर दुआ पढ़ते हैं,और मस्जिद से निकलकर घर की तरफ़ चलते हैं।]

चौथा दृश्य

[वलीद का दरबार। वलीद और मरवान बैठे हुए हैं। रात का समय ]

मर०-अब तक नहीं आये! मैंने आपसे कहा कि वह हरगिज़ न आयेंगे।

वलीद-आयेंगे, और ज़रूर आयेंगे। मुझे उनके कौल पर पूरा भरोसा है।

मर०-कहीं ऐसा तो नहीं हुआ कि उन्हें अमीर की वफ़ात की खबर लग गयी हो, और वह अपने साथियों को जमा करके हमसे जंग करने या रहे हों।

[हुसैन का प्रवेश। वलीद सम्मान के भाव से खड़ा हो जाता है, और दरवाजे पर आकर हाथ मिलाता है। मरवान अपनी जगह पर बैठा रहता है।]

हुसैन-खुदा की तुम पर रहमत हो। (मरवान को बैठे देखकर) मेल फूट से और प्रेम द्वेष से बहुत अच्छा है। मुझे क्यों याद किया ?

वलीद-इस तकलीफ़ के लिए माफ कीजिए,आपको यह सुनकर अफसोस होगा कि अमीर मुआबिया ने वफ़ात पायी।

मर०-और खलीफ़ा यजीद ने हुक्म दिया है कि आपसे उनके नाम की बैयत ली जाय।

हुसैन-मेरे नज़दीक यह मुनासिब नहीं है कि मुझ जैसा आदमी छुपे-छुपे बैयत ले। यह न मेरे लिए मुनासिब है और न यजीद के लिए काफ़ी। बेहतर है,आप एक आम जलसा करें,और शहर के सब रईसों और आलियों को बुलाकर यज़ीद की बैयत का सवाल पेश करें। मैं भी उन लोगों के साथ रहूँगा,और उस वक्त सबसे पहले जवाब देनेवाला मैं हूँगा।