वलीद-मुझे आपकी यह सलाह माकूल मालूम होती है। बेशक, आपके बैयत लेने से वह नतीजा न निकलेगा,जो यजीद की मंशा है। कोई कहेगा कि आपने बैयत ली,और कोई कहेगा कि नहीं। और इसकी तसदीक करने में बहुत वक़्त लगेगा। तो जलसा करूँ ?
मर०–अमीर,मैं आपको खबरदार किये देता हूँ कि इनकी बातों में न आइए। बगैर बैयत लिये इन्हें यहाँ से न जाने दीजिए,वरना आप इनसे उस वक्त तक बैयत न ले सकेंगे, जब तक खून की नदी न बहेगी। यह चिनगारी की तरह उड़कर सारी खिलाफत में आग लगा देंगे।
वलीद-मरवान,मैं तुमसे मिन्नत करता हूँ,चुप रहो।
मर०-हुसैन,मैं खुदा को गवाह करके कहता हूँ कि मैं आपका दुश्मन नहीं हूँ। मेरी दोस्ताना सलाह यह है कि आप यजीद की बैयत मंजूर कर लीजिए,ताकि आपको कोई नुकसान न पहुँचे। आपस का फ़साद मिट जाय,और हजारों खुदा के बन्दों की जान बच जायँ। खलीना आपके बैयत की खबर सुनकर बेहद खुश होंगे,और आपके साथ ऐसे सलूक करेंगे कि खिलाफ़त में कोई आदमी आपकी बराबरी न कर सकेगा। मैं आपको यकीन दिलाता हूँ कि आपकी जागीरें और वज़ीफ़ दोचंद करा दूंगा,और आप मदीनेमे इज्जत के साथ रसूल के क़दमो से लगे हुए दीन और दुनिया में सुर्खरू होकर जिन्दगी बसर करेंगे।
हुसैन-बस करो मरवान,मैं तुम्हारी दोस्ताना सलाह सुनने के लिए नहीं आया हूँ। तुमने कभी अपनी दोस्ती का सबूत नहीं दिया, और इस मौके पर मैं तुम्हारी सलाह को दोस्ताना न समझकर दगा समढूं,तो मेरा दिल और मेरा खुदा मुझसे नाखुश न होगा। आज इस्लाम इतना कमज़ोर हो गया है कि रसूल का बेटा यज़ीद की बैयत लेने के लिए मजबूर हो!
मर०-उनकी बैयत से आपको क्या एतराज है ?
हुसैन-इसलिए कि वह शराबी,झूठा,दगाबाज़,हरामकार और जालिम है। वह दीन के आलिमों की तौहीन करता है। जहाँ जाता है,