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पृष्ठ:कर्बला.djvu/४२

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कर्बला

एक गधे पर एक बन्दर को आलिमों के कपड़े पहनाकर साथ ले जाता है। मैं ऐसे आदमी की बैयत अख्तियार नहीं कर सकता।

मर०-या अमीर,आप इनसे बैयत लेंगे या नहीं ?

हुसैन–मेरी बैयत किसी के अख्तियार में नहीं है।

मर०-कसम खुदा की,आप बैयत कबूल किये बिना नहीं जा सकते । मैं तुम्हें यहीं कत्ल कर डालूँगा (तलवार खींचकर बढ़ता है)।

हुसैन-(डपटकर) तू मुझे कत्ल करेगा,तुझमें इतनी हिम्मत नहीं है! दूर रह। एक कदम भी आगे रखा,तो तेरा नापाक सर ज़मीन पर होगा।

[अब्बास तीस सशस्त्र आदमियों के साथ तलवार खींचे हुए घुस आते हैं ।]

अब्बास-(मरवान की तरफ झपटकर) मलऊन,यह ले;तेरे लिए दोज़ख का दरवाजा खुला हुआ है।

हुसैन–(मरवान के सामने खड़े होकर) अब्बास,तलवार म्यान में करो। मेरी लड़ाई मरवान से नहीं,यज़ीद से है। मैं खुश हूँ कि यह अपने आका का ऐसा वफ़ादार खादिम है।

अब्बास-इस मरदूद की इतनी हिम्मत कि आपके मुबारक जिस्म पर हाथ उठाये! कसम खुदा की,इसका खून पी जाऊँगा।

हुसैन-मेरे देखते ही नहीं, मुसलमान पर मुसलमान का खून हराम है।

वलीद-(हुसैन से) मैं सख्त नादिम हूँ कि मेरे सामने श्रापकी तौहीन हुई। खुदा इसका अज़ाब मुझे दे।

हुसैन-वलीद, मेरी तकदीर में अभी बड़ी-बड़ी सख्तियाँ झेलनी बदी हैं। यह उस मार्के की तमहीद है,जो पेश आनेवाला है। हम और तुम शायद फिर न मिलें,इसलिए रुखसत। मैं तुम्हारी मुरौवत और भलमनसी को कभी न भूलूँगा। मेरी तुमसे सिर्फ इतनी अर्ज़ है कि मेरे यहाँ से जाने में ज़रा भी रोक-टोक न करना।

[ दोनों गले मिल कर विदा होते हैं। अब्बास और तीस आदमी नाहर चले जाते हैं।