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पृष्ठ:कर्बला.djvu/४४

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कर्बला

की खाक है,और मैं उनकी बेटी का बेटा हूँ। तू मेरे दिल का हाल जानता है। मैंने तेरी और तेरे रसूल की मर्जी पर हमेशा चलने की कोशिश की है। मुझ पर रहम कर ााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााआर उस पाक नबी के नाते, जो इस कब्र में सोया हुआ है, मुझे हिदायत कर कि इस वक्त मैं क्या करूं ?

[ रोते हैं,और कब्र पर सिर रखकर बैठ जाते हैं। एक क्षण
में चौंककर उठ बैठते हैं ]

अब्बास-भैया,अब यहाँ से चलो। घर के लोग घबरा रहे होंगे।

हुसैन-नहीं अब्बास,अब मैं लौटकर घर न जाऊँगा। अभी मैंने ख्वाब देखा कि नाना पाये हैं,और मुझे छातो से लगाकर कहते हैं- "बहुत थोड़े दिनों में तू ऐसे आदमियों के हाथों शहीद होगा, जो अपने को मुसलमान कहते होंगे,और मुसलमान न होंगे। मैंने तेरी शहादत के लिए कर्बला का मैदान चुना है,उस वक्त तू प्यासा होगा,पर तेरे दुश्मन तुझे एक बूंद पानी भी न देंगे। तुम्हारे लिए यहाँ बहुत ऊँचा रुतबा रखा गया है,पर वह रुतबा शहादत के बगैर हासिल नहीं हो सकता।" यह कहकर नाना गायब हो गये।

अब्बास-(रोकर) भैया, हाय भैया, यह ख्वाब है या पेशीनगोई ?

[मुहम्मद हंफ़िया का प्रवेश।]

मुह --हुसैन,तुमने क्या फैसला किया ?

हुसैन-खुदा की मर्जी है कि मैं कत्ल किया जाऊँ।

मुह०-खुदा की मर्जी खुदा ही जानता है। मेरी सलाह तो यह है कि तुम किसी दूसरे शहर में चले जाओ,और वहाँ से अपने क्रासिदों को उस जवार में भेजो। अगर लोग तुम्हारी बैयत मंजूर कर लें,तो खुदा का शुक्र करना,वरना यों भी तुम्हारी आबरू कायम रहेगी। मुझे खौफ़ यही है कि कहीं तुम ऐसो जगह न जा फँसो,जहाँ कुछ लोग तुम्हारे दोस्त हों,और कुछ तुम्हारे दुश्मन। कोई चोट बग़ली घूसों की तरह नहीं होती,कोई साँप इतना कातिल नहीं होता,जितना आस्तीन का,कोई कान इतना तेज़ नहीं होता,जितना दीवार का, और कोई दुश्मन इतना खौफ़नाक नहीं होता,जितनी दगा। इनसे हमेशा बचते रहना। ,