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पृष्ठ:कर्बला.djvu/४८

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कर्बला

होता। आज मुझे सुबह होते-होते यहाँ से निकल जाना चाहिए। यज़ीद को मेरे अज़ीज़ो से दुश्मनी नहीं, उसे ख़ोफ़ सिर्फ़ मेरा है। तुम लोग मुझे यहाँ से रुखसत करो। मुझे यक़ीन है कि यज़ीद तुम लोगों को तंग न करेगा। उसके दिल में चाहे न हो, मगर मुसलमानों के दिल में गैरत बाक़ी है। वह रसूल की बहू-बेटियों की आबरू लुटते देखेंगे, तो उनका खून ज़रूर गर्म हो जायगा।

जैनब–--भैया, यह हर्गिज़ न होगा। हम भी आपके साथ चलेंगी। अगर इस्लाम का बेटा अपनी दिलेरी से इस्लाम का वक़ार क़ायम रखेगा, तो हम अपने सब्र से, ज़ब्त से और बरदाश्त से उसकी शान निभायेंगे। हम पर जिहाद हराम है, लेकिन हम मौका पड़ने पर मरना जानती हैं। रसूल पाक की क़सम, आप हमारी आँखों में आँसू न देखेंगे, हमारे लबों से फ़रियाद न सुनेंगे, और हमारे दिलों से आह न निकलेगी। आप हक़ पर जान देकर इस्लाम की आबरू रखना चाहते है, तो हम भी एक बेदीन और बदकार की हिमायत मे रहकर इस्लाम के नाम पर दाग़ लगाना नहीं चाहतीं।

[ सिपाहियों का एक दस्ता सड़क पर आता दिखाई पड़ता है। ]

हुसैन---अब्बास, यज़ीद के आदमी हैं। वलीद ने भी दग़ा दी। आह, हमारे हाथों में तलवार भी नहीं। ऐ ख़ुदा, मदद!

अब्बास---कलाम पाक की क़सम, ये मरदूद आपके क़रीब न आने पायेंगे।

जैनब--–भैया, तुम सामने से हट जाओ।

हुसैन---जैनब, घबराओ मत, आज मैं दिखा दूँगा कि अली का बेटा कितनी दिलेरी से जान देता है।

[ अब्बास बाहर निकलकर फ़ौज के सरदार से ]

ऐ सरदार, किसकी बदनसीबी है कि तू उसके नज़दीक जा रहा है।

सर॰---या हज़रत, हमें शहर में गश्त लगाने का हुक्म हुआ है कि कहीं बाग़ी तो जमा नहीं हो रहे हैं।

हुसैन--–अब देर करने का मौक़ा नहीं। चलूँ, अम्माजान से रुख़सत हो लूँ। ( फ़ातिमा की कब्र पर जाकर ) ऐ मादरे-जहान, तेरा बदनसीब बेटा,