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कर्बला

को पकड़-पकड़ ज़ियाद के पास ले जा रहे हैं,और वहाँ जबरन् उनसे बैयत ली जा रही है।

क़मर-तो लोग क्यों उसकी बैयत कबूल करते हैं ?

अब्दु०-न करें,तो क्या करें। अमीरों और रईसों को तो जागीर और मनसब की हवस ने फोड़ लिया। बेचारे ग़रीब क्या करें। नहीं बैयत लेते,तो मारे जाते हैं,शहरबदर किये जाते हैं। जिन गिने-गिनाये रईसों ने बैयत नहीं ली,उन पर भी सख्ती करने की तैयारियां हो रही हैं। मगर ज़ियाद चाहता है कि कूफ़ावाले आपस ही मे लड़ जायँ । इसी लिए उसने अब तक कोई सख्ती नहीं की है।

कमर-यज़ीद को खिलाफत का कोई हक्क तो है नहीं,महज़ तलवार का जोर है। शरा के मुताबिक हमारे ख़लीफ़ा हुसैन हैं।

अब्दु०-वह तो ज़ाहिर ही है,मगर यहाँ के लोगों को तो जानते हो न। पहले तो ऐसा शोर मचायेगे,गोया जान देने पर आमादा हैं, पर ज़रा किसी ने लालच दिखलाया,और सारा शोर ठंडा हो गया । गिने हुए आदमियों को छोड़कर सभी बैयत ले रहे हैं।

क्रमर-तो फिर हमारे ऊपर भी तो वही मुसीबत आनी है ?

अब्दु०-इसी फ्रिक्र में तो पड़ा हुआ हूँ। कुछ सूझता ही नहीं।

क़मर-सूझना ही क्या है। यज़ीद की बैयत हर्गिज़ मत कबूल करो ।

अब्दु०-अपनी खुशी की बात नहीं है।

क्रमर-क्या होगा?

अब्दु०-वज़ीफ़ा बन्द हो जायगा।

कमर-ईमान के सामने वजीफे की कोई हस्ती नहीं।

अब्दु०-जागीर ज्यादा नहीं,तो परवरिश तो हो ही जाती है। वह फ़ौरन् छिन जायगी। कितनी मेहनत से हमने मेवों का बाग़ लगाया है। यह कब गवारा होगा कि हमारी मेहनत का फल दूसरे खायँ। कलाम पाक की कसम,मेरे बाग़ पर बड़ों-बड़ों को रश्क है।

कमर-बाग़ के लिए ईमान बेचना पड़े,तो बाग की तरफ आँख उठाकर देखना भी गुनाह है।