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पृष्ठ:कर्बला.djvu/५१

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कर्बला

अब्बास-या हज़रत,खुदा के लिए हमारे ऊपर यह सितम न कीजिए। हम जीते-जी कभी आपसे जुदा न होंगे।

जैनब भैया,मेरी जान तुम पर फ़िदा हो। अगर औरतों को तुमने छोड़ दिया,तो लौटकर उन्हें जीता न पाओगे। तुम्हारी तीनो फूल-सी बेटियाँ ग़म से मुरझाई जा रही हैं। शहरबानू का हाल देख ही रहे हो। तुम्हारे बगैर मदीना सूना हो जायगा,और घर की दीवारें हमें फाड़ खायेंगी। हमारे ऊपर इस बदनामी का दाग़ न लगायो कि मुसीबत में रसूल की बेटियों ने अपने सरदार से बेवफ़ाई की। तुम्हारे साथ के नाके यहाँ के मीठे स्लुक़मों से ज्यादा मीठे मालूम होंगे। जिस्म को तकलीफ़ होगी, पर दिल को तो इतमीनान रहेगा।

अली अक०-अब्बा,मैं इस मुसीबत का सारा मज़ा आपको अकेले न उठाने दूंगा। इसमें मेरा भी हिस्सा है। कौन हमारे नेज़ों की चमक देखेगा ? किसे हम अपनी दिलेरी के जौहर दिखायेंगे? नहीं,हम यह ग़म की दावत आपको अकेले न खाने देंगे।

अली अस०-अब्बा,मुझे अपने आगे घोड़ों पर बिठाकर रास मेरे हाथों में दे दीजिएगा। मैं उसे ऐसा दौड़ाऊँगा कि हवा भी हमारी गर्द को न पहुंचेगी।

हुसैन-हाय,अगर मेरी तकदीर की मंशा है कि मेरे जिगर के टुकड़े मेरी आँखों के सामने तड़पें,तो मेरा क्या बस है। अगर खुदा को यही मंजूर है कि मेरा बाग़ मेरी नज़रों के सामने उजाड़ा जाय, तो मेरा क्या चारा है। खुदा,गवाह रहना कि इस्लाम की इज्जत पर रसूल की औलाद कितनी बेदरदी से क़ुरबान की जा रही है!

छठा दृश्य

[समय -सन्ध्या। कूफा शहर का एक मकान।अब्दुल्लाह,कमर,वहब बातें कर रहे हैं।]

अब्दु०-बड़ा ग़ज़ब हो रहा है। शामो फ़ौज के सिपाही शहरवालों