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पृष्ठ:कर्बला.djvu/५४

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कर्बला

. वहब--मुझे अपने ईमान के मामले में किसी से पूछने की ज़रूरत नहीं। मुझे यकीन है कि खिलाफ़त के हक़दार हज़रत हुसैन हैं । यज़ीद की बैयत कभी न क़बूल करूँगा,जायदाद रहे या न रहे, जान रहे या न रहे ।

क़मर--बेटा,तेरी मा तुझ पर फ़िदा हो,तेरी बातों ने दिल खुश कर दिया । आज मेरी-जैसी खुशनसीब मा दुनिया में न होगी। मगर बेटा,तुम्हारे अब्बाजान ठीक कहते हैं,नसीमा से पूछ लो, देखो,वह क्या कहती है। मैं नहीं चाहती कि हम लोगों की दीन-परवरी के बाइस उसे तकलीफ हो,और जंगलों की खाक छाननी पड़े । उसकी दिलजोई करना तुम्हारा फ़र्ज़ है।

वहब--आप फ़रमाती हैं,तो मैं उससे भी पूछ लूँगा । मगर मैं साफ कहे देता हूँ कि मैं उसकी रजा का गुलाम न बनूंगा । अगर उसे दोन के मुकाबले में ऐश व आराम ज़्यादा पसन्द है,तो शौक से रहे, लेकिन मैं बैयत की जिल्लत न उठाऊँगा।

[अरब का एक गाँव-एक विशाल मन्दिर बना हुआ है,वालाब है,जिसके पक्के घाट बने हुए हैं,मनोहर बागीचा,मोर,हरिण,गाय आदि पशु-पक्षी इधर-उधर विचर रहे हैं। साहसराय और उनके बन्धु तालाब के किनारे सन्ध्या-हवन,ईश्वर-प्रार्थना कर रहे हैं।]

आखरेश अनंत विधाता हो,मंगलमय मोदप्रदाता हो

मय-मंजन शिव जन त्राता हो,अविनाशी अद्भुत ज्ञाता हो ।