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कर्बला

करना चाहिए। विशेषकर इस समय हमारी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि हम आत्मगौरव की दुहाई देते हुए रणक्षेत्र में कूद पड़ें। शस्त्र-ग्रहण सर्वदा अंतिम उपाय होना चाहिए।

सिंहदत्त---धन आत्मा की रक्षा के लिए ही है।

हरजसराय---आत्मा बहुत ही व्यापक शब्द है। धन केवल धर्म की रक्षा के लिए है।

रामसिंह---धर्म की रक्षा रक्त से नहीं होती; शील, विनय, सदुपदेश, सहानुभूति, सेवा ये सब उसके परीक्षित साधन हैं, और हमें स्वयं इन साधनों की सफलता का अनुभव हो चुका है।

सिंहदत्त---राजनीति के क्षेत्र में ये साधन उसी समय सफल होते हैं, जब शस्त्र उनके सहायक हों, अन्यथा युद्धलाभ से अधिक उनका मूल्य नहीं होता।

साहसराय---हमारा कर्त्तव्य अपनी वीरता का प्रदर्शन अथवा राज्य-प्रबन्ध की निपुणता दिखाना नहीं है, न हमारा अभीष्ट अहिंसा-व्रत का पालन करना है। हमने केवल अन्याय को दमन करने का व्रत धारण किया है, चाहे उसके लिए किसी उपाय का अवलम्बन करना पड़े। इसलिए सबसे पहले हमें दूतों द्वारा यज़ीद के मनोभाव का परिचय प्राप्त करना चाहिए। उसके पश्चात् हमें निश्चय करना होगा कि हमारा कर्तव्य क्या है। मैं रामसिंह और भीरुदत्त से अनुरोध करता हूँ कि ये आज ही शाम को यात्रा पर अग्रसर हो जायँ।