[ यज़ीद़ का दरबार--यज़ीद, जुहाक, मुआबिया, रूमी, हुर और अन्य समासद बैठे हुए हैं। दो वेश्याएं शराब पिला रही हैं। ]
यज़ीद---तुममें से कोई बता सकता है, जन्नत कहाँ है?
हुर---रसूल ने तो चौथे आसमान पर फ़रमाया है।
शम्स---मैं चौथे-पाँचवें आसमान का क़ायल नहीं। खुदा का फ़ज़्ल और करम ही जन्नत है।
रूमी---खुदा की निगाह कोई क़बरिस्तान नहीं है कि वहाँ मुर्दे दफ़न हों। जन्नत वहीं होगी, जहाँ लाशें दफ़न की जाती होंगी।
यजीद---उस्ताद, तुम भी चूक गये, फिर ज़ोर लगाना। अब की ज़ुहाक़ की बारी है। कहिए शेख़जी, जन्नत कहाँ है?
ज़ुहाक़---बतलाऊँ? इस शराब के प्याले में।
यज़ीद---पते पर पहुँचे, पर अभी कुछ कसर है। ज़रा और ज़ोर लगाओ।
जहान---उस प्याले में जो किसी नाज़नीन के हाथ से मिले।
यज़ीद---लाना हाथ। बस वही जन्नत है। मए-गुलफ़ाम हो, और किसी नाज़नीन का पंजए-मरजान हो। इस एक जन्नत पर रसूल की हज़ारों जन्नतें कुरबान हैं। अच्छा, अब बताओ, दोज़ख कहाँ है?
हुर---या खलीफ़ा आपको दीन-हक़ की तौहीन मुनासिब नहीं।
यज़ीद---हुर, तुमने सारा मजा किरकिरा कर दिया। आँखों की क़सम है, तुम मेरी मजलिस में बैठने के क़ाबिल नहीं हो। सारा मज़ा खाक में मिला दिया। यज़ीद के सामने दीन का नाम लेना मना है। दीन उन मुल्लाओं के लिए है, जो मस्जिदों में पड़े हुए गोश्त की हड्डियों को तरसते हैं, दीन उनके लिए है, जो मुसीबतों के सबब से ज़िन्दगी से बेज़ार हैं, जो मुहताज हैं, बेबस हैं, भूखों मरते हैं, जो ग़ुलाम हैं, दुर्रे खाते हैं। दीन बूढ़े मरदों के लिए, रॉड औरतों के लिए, दिवालिए सौदागरों के लिए है। इस ख़याल से उनके आँसू पुँछते हैं, दिल को तसकीन होती है। बादशाहों के लिए दीन नहीं है। उनकी नजात रसूल और खुदा के निगाह-करम की मुहताज नहीं।