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पृष्ठ:कर्बला.djvu/६४

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कर्बला

उनकी नजात उनके हाथों में है। दोस्तो, बतलाना हमारा पीर कौन है?

जुहाक़---पीर मुगाँ (साक़ी)।

यज़ीद---लाना हाथ। हमारा पीर साक़ी है, जिसके दस्तेकरम से हमें यह नियामत मयस्सर हुई है। अच्छा, कौन मेरे सवाल का जवाब देता है, दोज़ख कहाँ है?

सम्स---किसी सूदख़ोर की तोंद में।

यज़ीद---बिल्कुल ग़लत।

रूमी---ख़लीफ़ा के गुस्से में।

यज़ीद---(मुस्किराकर) इनाम के क़ाबिल जवाब है, मगर ग़लत।

कीस---किसी मुल्ला की नमाज में, जो जमीन पर माथा रगड़ते हुए ताकता रहता है कि कहीं से रोटियाँ पा रही हैं या नहीं।

यजीद---वल्ला, खूब जवाब है, मगर ग़लत।

जुहाक़---किसी नाज़नीन के रूठने में।

यज़ीद---ठीक, ठीक, बिल्कुल ठीक। लाना हाथ। दिल खुश हो गया---(वेश्याओं से) नरगिस, इस जवाब की दाद दो, जुहरा, शेखजी के हाथों मे बोसा दो। वह गीत गाओ, जिसमें शराब की बू हो, शराब का नशा हो, शराब की गर्मी हो।

नरगिस---आज खलीफ़ा से कोई बड़ा इनाम लूँगी।

[ गाती है ]


हाँ खुले साक़ी दरे - मैख़ाना आज,
ख़ैर हो, भर दे मेरा पैमाना आज।
नाज़ करता झूमता मस्ताना वार,
अब आता है, सूए-मैख़ाना आज।
बोसए-लब हुस्न के सदक़े में दे,
औ बुते तरसा हमें तरसा न आज।
इश्के-चश्मे-मस्त का देखो असर,
पाँव पड़ता है मेरा मस्ताना आज।